अध्याय 16 श्लोक 16
इस प्रकार अनेक चिन्ताओं से उद्विग्न होकर तथा मोहजाल में बँधकर वे इन्द्रियभोग में अत्यधिक आसक्त हो जाते हैं और नरक में गिरते हैं ।
अध्याय 16 : दैवी और आसुरी स्वभाव
श्लोक 16.16
अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृताः |
अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृताः |
प्रसक्ताः कामभोगेषु पतन्ति नरकेSश्रुचौ || १६ ||
अनेक - कई; चित्त - चिन्ताओं से; विभ्रान्ता - उद्विग्न; मोह - मोह में; जाल - जाल से; समावृताः - घिरे हुए; प्रसक्ताः - आसक्त; काम-भोगेषु - इन्द्रिय तृप्ति में; पतन्ति - गिर जाते हैं; नरके - नरक में; अशुचौ - अपवित्र ।
भावार्थ
इस प्रकार अनेक चिन्ताओं से उद्विग्न होकर तथा मोहजाल में बँधकर वे इन्द्रियभोग में अत्यधिक आसक्त हो जाते हैं और नरक में गिरते हैं ।
भावार्थ
इस प्रकार अनेक चिन्ताओं से उद्विग्न होकर तथा मोहजाल में बँधकर वे इन्द्रियभोग में अत्यधिक आसक्त हो जाते हैं और नरक में गिरते हैं ।
तात्पर्य
प्रत्येक आसुरी व्यक्ति सोचता है कि वह अन्य सभी लोगों की बलि करके रह सकता है । सामान्यतया ऐसा व्यक्ति स्वयं को परम ईश्र्वर मानता है और आसुरी उपदेशक अपने अनुयायियों से कहता है कि, "तुम लोग ईश्र्वर को अन्यत्र क्यों ढूँढ रहे हो? तुम स्वयं अपने ईश्र्वर हो! तुम जो चाहो कर सकते हो | ईश्र्वर पर विश्र्वास मत करो । ईश्र्वर को दूर करो । ईश्र्वर मृत है ।" ये ही आसुरी लोगों के उपदेश हैं ।
यद्यपि आसुरी मनुष्य अन्यों को अपने ही समान या अपने से बढ़कर धनी और प्रभावशाली देखता है, तो भी वह सोचता है कि उससे बढ़कर न तो कोई धनी है और न प्रभावशाली । जहाँ तक उच्च लोकों में जाने की बात है वे यज्ञों को सम्पन्न करने में विश्र्वास नहीं करते । वे सोचते हैं कि वे अपनी यज्ञ-विधि का निर्माण करेंगे और कोई ऐसे मशीन बना लेंगे जिससे वे किसी भी उच्च लोक तक पहुँच जाएँगे । ऐसे आसुरी व्यक्ति का सर्व श्रेष्ठ उदहारण रावण था । उसने लोगों के समक्ष ऐसी योजना प्रस्तुत की थी, जिसके द्वारा वह एक ऐसी सीढ़ी बनाने वाला था, जिससे कोई भी व्यक्ति वेदों में वर्णित यज्ञों को सम्पन्न किये बिना स्वर्गलोक को जा सकता था । उसी प्रकार से आधुनिक युग के ऐसे ही आसुरी लोग यान्त्रिक विधि से उच्चतर लोकों तक पहुँचने का प्रयास कर रहे हैं । ये सब मोह के उदहारण हैं । परिणाम यह होता है कि बिना जाने हुए वे नरक की ओर बढ़ते जाते हैं । यहाँ पर मोहजाल शब्द अत्यन्त सार्थक है । जाल का तात्पर्य है मनुष्य मछली की भाँति मोह रूपी जाल में फँस कर उससे निकल नहीं पाता ।
<< © सर्वाधिकार सुरक्षित , भक्तिवेदांत बुक ट्रस्ट >>
Note : All material used here belongs only and only to BBT .
For Spreading The Message Of Bhagavad Gita As It Is
By Srila Prabhupada in Hindi ,This is an attempt to make it available online ,
if BBT have any objection it will be removed .
No comments:
Post a Comment
Hare Krishna !!