अध्याय 17 श्लोक 7
यहाँ तक कि प्रत्येक व्यक्ति जो भोजन पसन्द करता है, वह भी प्रकृति के अनुसार तीन प्रकार का होता है । यही बात यज्ञ, तपस्या तथा दान के लिए भी सत्य है । अब उनके भेदों के विषय में सुनो ।
अध्याय 17 : श्रद्धा के विभाग
श्लोक 17.7
आहारस्त्वपि सर्वस्य त्रिविधो भवति प्रियः |
आहारस्त्वपि सर्वस्य त्रिविधो भवति प्रियः |
यज्ञस्तपस्तथा दानं तेषां भेदमिमं श्रृणु || ७ ||
आहारः - भोजन; तु - निश्चय ही; अपि - भी; सर्वस्य - हर एक का; त्रि-विधः - तीन प्रकार का; भवति - होता है; प्रियः - प्यारा; यज्ञः - यज्ञ; तपः - तपस्या; तथा - और; दानम् - दान; तेषाम् - उनका; भेदम् - अन्तर; इमम् - यह; शृणु - सुनो ।
भावार्थ
यहाँ तक कि प्रत्येक व्यक्ति जो भोजन पसन्द करता है, वह भी प्रकृति के अनुसार तीन प्रकार का होता है । यही बात यज्ञ, तपस्या तथा दान के लिए भी सत्य है । अब उनके भेदों के विषय में सुनो ।
भावार्थ
यहाँ तक कि प्रत्येक व्यक्ति जो भोजन पसन्द करता है, वह भी प्रकृति के अनुसार तीन प्रकार का होता है । यही बात यज्ञ, तपस्या तथा दान के लिए भी सत्य है । अब उनके भेदों के विषय में सुनो ।
तात्पर्य
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