अध्याय 2 श्लोक 21
Translate
Thursday, 28 February 2013
अध्याय 2 श्लोक 2 - 20 , BG 2 - 20 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 20
आत्मा के लिए
किसी भी काल में न तो जन्म है न मृत्यु | वह न तो कभी जन्मा है, न जन्म
लेता है और न जन्म लेगा | वह अजन्मा, नित्य, शाश्र्वत तथा पुरातन है | शरीर
के मारे जाने पर वह मारा नहीं जाता |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 19 , BG 2 - 19 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 19
जो इस जीवात्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसे मरा हुआ समझता है, वे दोनों ही अज्ञानी हैं, क्योंकि आत्मा न तो मरता है और न मारा जाता है |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 18 , BG 2 - 18 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 18
अविनाशी, अप्रमेय तथा शाश्र्वत जीव के भौतिक शरीर का अन्त अवश्यम्भावी है | अतः हे भारतवंशी! युद्ध करो |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 17 , BG 2 - 17 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 17
जो सारे शरीर में व्याप्त है उसे ही अविनाशी समझो | उस अव्यय आत्मा को नष्ट करने में कोई भी समर्थ नहीं है |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 16 , BG 2 - 16 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 16
तत्त्वदर्शियों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि असत् (भौतिक शरीर) का तो कोई चिरस्थायित्व नहीं है, किन्तु सत् (आत्मा) अपरिवर्तित रहता है | उन्होंने इन दोनों की प्रकृति के अध्ययन द्वारा यह निष्कर्ष निकाला है |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 15 , BG 2 - 15 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 15
हे पुरुषश्रेष्ठ (अर्जुन)! जो पुरुष सुख तथा दुख में विचलित नहीं होता और इन दोनों में समभाव रहता है, वह निश्चित रूप से मुक्ति के योग्य है |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 14 , BG 2 - 14 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 14
हे
कुन्तीपुत्र! सुख तथा दुख का क्षणिक उदय तथा कालक्रम में उनका अन्तर्धान
होना सर्दी तथा गर्मी की ऋतुओं के आने जाने के समान है | हे भरतवंशी! वे
इन्द्रियबोध से उत्पन्न होते हैं और मनुष्य को चाहिए कि अविचल भाव से उनको
सहन करना सीखे |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 13 , BG 2 - 13 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 13
जिस प्रकार शरीरधारी आत्मा इस (वर्तमान) शरीर में बाल्यावस्था से तरुणावस्था में और फिर वृद्धावस्था में निरन्तर अग्रसर होता रहता है, उसी प्रकार मृत्यु होने पर आत्मा दूसरे शरीर में चला जाता है | धीर व्यक्ति ऐसे परिवर्तन से मोह को प्राप्त नहीं होता |
Monday, 18 February 2013
अध्याय 2 श्लोक 2 - 12 , BG 2 - 12 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 12
ऐसा कभी नहीं हुआ कि मैं न रहा होऊँ या तुम न रहे हो अथवा ये समस्त राजा न रहे हों; और न ऐसा है कि भविष्य में हम लोग नहीं रहेंगे |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 11 , BG 2 - 11 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 11
श्री भगवान् ने कहा – तुम पाण्डित्यपूर्ण वचन कहते हुए उनके लिए शोक कर रहे हो जो शोक करने योग्य नहीं है | जो विद्वान होते हैं, वे न तो जीवित के लिए, न ही मृत के लिए शोक करते हैं |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 10 , BG 2 - 10 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 10
हे भरतवंशी (धृतराष्ट्र)! उस समय दोनों सेनाओं के मध्य शोकमग्न अर्जुन से कृष्ण ने मानो हँसते हुए ये शब्द कहे |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 9 , BG 2 - 9 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 9
संजय ने कहा – इस प्रकार कहने के बाद शत्रुओं का दमन करने वाला अर्जुन कृष्ण से बोला, “हे गोविन्द! मैं युद्ध नहीं करूँगा,” और चुप हो गया |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 8 , BG 2 - 8 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 8
मुझे ऐसा कोई साधन नहीं दिखता जो मेरी इन्द्रियों को सुखाने वाले इस शोक को दूर कर सके | स्वर्ग पर देवताओं के आधिपत्य की तरह इस धनधान्य-सम्पन्न सारी पृथ्वी पर निष्कंटक राज्य प्राप्त करके भी मैं इस शोक को दूर नहीं कर सकूँगा |
Monday, 11 February 2013
अध्याय 2 श्लोक 2 - 7 , BG 2 - 7 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 7
अब मैं अपनी कृपण-दुर्बलता के कारण अपना कर्तव्य भूल गया हूँ और सारा धैर्य खो चूका हूँ | ऐसी अवस्था में मैं आपसे पूछ रहा हूँ कि जो मेरे लिए श्रेयस्कर हो उसे निश्चित रूप से बताएँ | अब मैं आपका शिष्य हूँ और शरणागत हूँ | कृप्या मुझे उपदेश दें |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 6 , BG 2 - 6 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 6
हम यह भी नहीं जानते कि हमारे लिए क्या श्रेष्ठ है – उनको जीतना या उनके द्वारा जीते जाना | यदि हम धृतराष्ट्र के पुत्रों का वध कर देते हैं तो हमें जीवित रहने की आवश्यकता नहीं है | फिर भी वे युद्धभूमि में हमारे समक्ष खड़े हैं |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 5 , BG 2 - 5 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 5
ऐसे महापुरुषों को जो मेरे गुरु हैं, उन्हें मार कर जीने की अपेक्षा इस संसार में भीख माँग कर खाना अच्छा है | भले ही वे सांसारिक लाभ के इच्छुक हों, किन्तु हैं तो गुरुजन ही! यदि उनका वध होता है तो हमारे द्वारा भोग्य प्रत्येक वस्तु अनके रक्त से सनी होगी |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 4 , BG 2 - 4 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 4
अर्जुन ने कहा – हे शत्रुहन्ता! हे मधुसूदन! मैं युद्धभूमि में किस तरह भीष्म तथा द्रोण जैसे पूजनीय व्यक्तियों पर उलट कर बाण चलाऊँगा?
Wednesday, 6 February 2013
अध्याय 2 श्लोक 2 - 3 , BG 2 - 3 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 3
हे पृथापुत्र! इस हीन नपुंसकता को प्राप्त मत होओ | यह तुम्हेँ शोभा नहीं देती | हे शत्रुओं के दमनकर्ता! हृदय की क्षुद्र दुर्बलता को त्याग कर युद्ध के लिए खड़े होओ |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 2 , BG 2 - 2 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 2
श्रीभगवान् ने कहा – हे अर्जुन! तुम्हारे मन में यह कल्मष आया कैसे? यह उस मनुष्य के लिए तनिक भी अनुकूल नहीं है, जो जीवन के मूल्य को जानता हो | इससे उच्चलोक की नहीं अपितु अपयश की प्राप्ति होती है |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 1 , BG 2 - 1 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 1
संजय ने कहा – करुणा से व्याप्त, शोकयुक्त, अश्रुपूरित नेत्रों वाले अर्जुन को देख कर मधुसूदन कृष्ण ने ये शब्द कहे |
Monday, 4 February 2013
अध्याय 1 कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण
अध्याय 1
कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण
गीता 1.1 : धृतराष्ट्र ने कहा -- हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे तथा पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया ?
गीता 1.2 : संजय ने कहा - हे राजन! पाण्डुपुत्रों द्वारा सेना की व्यूहरचना देखकर राजा दुर्योधन अपने गुरु के पास गया और उसने ये शब्द कहे ।
गीता 1.3 : हे आचार्य! पाण्डुपुत्रों की विशाल सेना को देखें, जिसे आपके बुद्धिमान् शिष्य द्रुपद के पुत्र ने इतने कौशल से व्यवस्थित किया है ।
गीता 1.4 : इस सेना में भीम तथा अर्जुन के समान युद्ध करने वाले अनेक वीर धनुर्धर हैं - यथा महारथी युयुधान, विराट तथा द्रुपद ।
गीता 1.5 : इनके साथ ही धृष्टकेतु, चेकितान, काशिराज, पुरुजित्, कुन्तिभोज तथा शैब्य जैसे महान शक्तिशाली योद्धा भी हैं ।
गीता 1.6 : पराक्रमी युधामन्यु, अत्यन्त शक्तिशाली उत्तमौजा, सुभद्रा का पुत्र तथा द्रोपदी के पुत्र - ये सभी महारथी हैं ।
गीता 1.7 : किन्तु हे
ब्राह्मणश्रेष्ठ! आपकी सूचना के लिए मैं अपनी सेना के उन नायकों के विषय
में बताना चाहूँगा जो मेरी सेना को संचालित करने में विशेष रूप से निपुण
हैं ।
गीता 1.8 : मेरी सेना में स्वयं आप,
भीष्म, कर्ण, कृपाचार्य; अश्र्वत्थामा, विकर्ण तथा सोमदत्त का पुत्र
भूरिश्रवा आदि हैं जो युद्ध में सदैव विजयी रहे हैं ।
गीता 1.9 : ऐसे अन्य वीर
भी हैं जो मेरे लिए अपना जीवन त्याग करने के लिए उद्यत हैं । वे विविध
प्रकार के हथियारों से सुसज्जित हैं और युद्धविद्या में निपुण हैं ।
गीता 1.10 : हमारी शक्ति
अपरिमेय है और हम सब पितामह द्वारा भलीभाँति संरक्षित हैं, जबकि पाण्डवों
की शक्ति भीम द्वारा भलीभाँति संरक्षित होकर भी सीमित है ।
गीता 1.11: अतएव सैन्यव्यूह में अपने-अपने मोर्चों पर खड़े रहकर आप सभी भीष्म पितामह को पूरी-पूरी सहायता दें ।
गीता 1.12 : तब कुरुवंश के
वयोवृद्ध परम प्रतापी एवं वृद्ध पितामह ने सिंह-गर्जना की सी ध्वनि करने
वाले अपने शंख को उच्च स्वर से बजाया, जिससे दुर्योधन को हर्ष हुआ |
गीता 1.13 : तत्पश्चात् शंख, नगाड़े, बिगुल, तुरही तथा सींग सहसा एकसाथ बज उठे | वह समवेत स्वर अत्यन्त कोलाहलपूर्ण था |
गीता 1.14 : दूसरी ओर से श्र्वेत घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले विशाल रथ पर आसीन कृष्ण तथा अर्जुन ने अपने-अपने दिव्य शंख बजाये |
गीता 1.15 : भगवान्
कृष्ण ने अपना पाञ्चजन्य शंख बजाया, अर्जुन ने देवदत्त शंख तथा अतिभोजी
एवं अतिमानवीय कार्य करने वाले भीम ने पौण्ड्र नामक शंख बजाया |
गीता 1.16-18 : हे
राजन्! कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अपना अनन्तविजय नामक शंख बजाया तथा
नकुल और सहदेव ने सुघोष एवं मणिपुष्पक शंख बजाये | महान धनुर्धर काशीराज,
परम योद्धा शिखण्डी, धृष्टद्युम्न, विराट, अजेय सात्यकि, द्रुपद, द्रौपदी
के पुत्र तथा सुभद्रा के महाबाहु पुत्र आदि सबों में अपने-अपने शंख बजाये |
गीता 1.19 : इन
विभिन्न शंखों की ध्वनि कोलाहलपूर्ण बन गई जो आकाश तथा पृथ्वी को
शब्दायमान करती हुई धृतराष्ट्र के पुत्रों के हृदयों को विदीर्ण करने लगी |
गीता 1.20 : उस समय हनुमान
से अंकित ध्वजा लगे रथ पर आसीन पाण्डुपुत्र अर्जुन अपना धनुष उठा कर तीर
चलाने के लिए उद्यत हुआ | हे राजन् ! धृतराष्ट्र के पुत्रों को व्यूह में
खड़ा देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से ये वचन कहे |
गीता 1.21-22 : अर्जुन ने कहा -
हे अच्युत! कृपा करके मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच में ले चलें जिससे मैं
यहाँ युद्ध की अभिलाषा रखने वालों को और शस्त्रों कि इस महान परीक्षा में,
जिनसे मुझे संघर्ष करना है, उन्हें देख सकूँ |
गीता 1.23 : मुझे
उन लोगों को देखने दीजिये जो यहाँ पर धृतराष्ट्र के दुर्बुद्धि पुत्र
(दुर्योधन) को प्रसन्न करने की इच्छा से लड़ने के लिए आये हुए हैं |
गीता 1.24 : संजय ने कहा -
हे भरतवंशी! अर्जुन द्वारा इस प्रकार सम्बोधित किये जाने पर भगवान् कृष्ण
ने दोनों दलों के बीच में उस उत्तम रथ को लाकर खड़ा कर दिया |
गीता 1.25 : भीष्म, द्रोण तथा विश्र्व भर के अन्य समस्त राजाओं के सामने भगवान् ने कहा कि हे पार्थ! यहाँ पर एकत्र सारे कुरुओं को देखो |
गीता 1.26 : अर्जुन ने वहाँ
पर दोनों पक्षों की सेनाओं के मध्य में अपने चाचा-ताउओं, पितामहों,
गुरुओं, मामाओं, भाइयों, पुत्रों, पौत्रों, मित्रों, ससुरों और शुभचिन्तकों
को भी देखा |
गीता 1.27 : जब
कुन्तीपुत्र अर्जुन ने मित्रों तथा सम्बन्धियों की इन विभिन्न श्रेणियों को
देखा तो वह करुणा से अभिभूत हो गया और इस प्रकार बोला |
गीता 1.28 : अर्जुन ने कहा –
हे कृष्ण! इस प्रकार युद्ध कि इच्छा रखने वाले मित्रों तथा सम्बन्धियों को
अपने समक्ष उपस्थित देखकर मेरे शरीर के अंग काँप रहे हैं और मेरा मुँह
सूखा जा रहा है |
गीता 1.29 : मेरा सारा शरीर काँप रहा है, मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं, मेरा गाण्डीव धनुष मेरे हाथ से सरक रहा है और मेरी त्वचा जल रही है |
गीता 1.30 : मैं यहाँ अब और अधिक खड़ा रहने में असमर्थ हूँ | मैं अपने को भूल रहा हूँ और मेरा सिर चकरा रहा है | हे कृष्ण! मुझे तो केवल अमंगल के कारण दिख रहे हैं |
गीता 1.31 : हे कृष्ण! इस युद्ध में अपने ही स्वजनों का वध करने से न तो मुझे कोई अच्छाई दिखती है और न, मैं उससे किसी प्रकार कि विजय, राज्य या सुख की इच्छा रखता हूँ |
गीता 1.29 : मेरा सारा शरीर काँप रहा है, मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं, मेरा गाण्डीव धनुष मेरे हाथ से सरक रहा है और मेरी त्वचा जल रही है |
गीता 1.30 : मैं यहाँ अब और अधिक खड़ा रहने में असमर्थ हूँ | मैं अपने को भूल रहा हूँ और मेरा सिर चकरा रहा है | हे कृष्ण! मुझे तो केवल अमंगल के कारण दिख रहे हैं |
गीता 1.31 : हे कृष्ण! इस युद्ध में अपने ही स्वजनों का वध करने से न तो मुझे कोई अच्छाई दिखती है और न, मैं उससे किसी प्रकार कि विजय, राज्य या सुख की इच्छा रखता हूँ |
गीता 1.32-35 : हे गोविन्द! हमें राज्य, सुख अथवा इस जीवन से क्या लाभ! क्योंकि जिन सारे लोगों के लिए हम उन्हें चाहते हैं वे ही इस युद्धभूमि में खड़े हैं |
गीता 1.36 : यदि हम ऐसे आततायियों का वध करते हैं तो हम पर पाप चढ़ेगा, अतः यह उचित नहीं होगा कि हम धृतराष्ट्र के पुत्रों तथा उनके मित्रों का वध करें | हे लक्ष्मीपति कृष्ण! इससे हमें क्या लाभ होगा? और अपने ही कुटुम्बियों को मार कर हम किस प्रकार सुखी हो सकते हैं?
गीता 1.37-38 : हे जनार्दन! यद्यपि लोभ से अभिभूत चित्त वाले ये लोग अपने परिवार को मारने या अपने मित्रों से द्रोह करने में कोई दोष नहीं देखते किन्तु हम लोग, जो परिवार के विनष्ट करने में अपराध देख सकते हैं, ऐसे पापकर्मों में क्यों प्रवृत्त हों?
गीता 1.39 : कुल का नाश होने पर सनातन कुल-परम्परा नष्ट हो जाती है और इस तरह शेष कुल भी अधर्म में प्रवृत्त हो जाता है |
गीता 1.40 : हे कृष्ण! जब कुल में अधर्म प्रमुख हो जाता है तो कुल की स्त्रियाँ दूषित हो जाती हैं और स्त्रीत्व के पतन से हे वृष्णिवंशी! अवांछित सन्तानें उत्पन्न होती हैं |
गीता 1.41 : अवांछित सन्तानों की वृद्धि से निश्चय ही परिवार के लिए तथा पारिवारिक परम्परा को विनष्ट करने वालों के लिए नारकीय जीवन उत्पन्न होता है | ऐसे पतित कुलों के पुरखे (पितर लोग) गिर जाते हैं क्योंकि उन्हें जल तथा पिण्ड दान देने की क्रियाएँ समाप्त हो जाती हैं |
गीता 1.42 : जो लोग कुल-परम्परा को विनष्ट करते हैं और इस तरह अवांछित सन्तानों को जन्म देते हैं उनके दुष्कर्मों से समस्त प्रकार की सामुदायिक योजनाएँ तथा पारिवारिक कल्याण-कार्य विनष्ट हो जाते हैं |
गीता 1.43 : हे प्रजापालक कृष्ण! मैनें गुरु-परम्परा से सुना है कि जो लोग कुल-धर्म का विनाश करते हैं, वे सदैव नरक में वास करते हैं |
गीता 1.44 : ओह! कितने आश्चर्य की बात है कि हम सब जघन्य पापकर्म करने के लिए उद्यत हो रहे हैं | राज्यसुख भोगने कि इच्छा से प्रेरित होकर हम अपने सम्बन्धियों को मारने पर तुले हैं |
गीता 1.45 : यदि शस्त्रधारी धृतराष्ट्र के पुत्र मुझ निहत्थे तथा रणभूमि में प्रतिरोध न करने वाले को मारें, तो यह मेरे लिए श्रेयस्कर होगा ।
गीता 1.46 : संजय ने कहा – युद्धभूमि में इस प्रकार कह कर अर्जुन ने अपना धनुष तथा बाण एक ओर रख दिया और शोकसंतप्त चित्त से रथ के आसन पर बैठ गया |
<< © सर्वाधिकार सुरक्षित , भक्तिवेदांत बुक ट्रस्ट >>
Note : All material used here belongs only and only to BBT .
For Spreading The Message Of Bhagavad Gita As It Is
By Srila Prabhupada in Hindi ,This is an attempt to make it available online ,
if BBT have any objection it will be removed .
Subscribe to:
Posts (Atom)