अध्याय 11 श्लोक 20
यद्यपि आप एक हैं, किन्तु आप आकाश तथा सारे लोकों एवं उनके बीच के समस्त अवकाश में व्याप्त हैं | हे महापुरुष! आपके इस अद्भुत तथा भयानक रूप को देखके सारे लोक भयभीत हैं |Translate
Tuesday, 8 March 2016
अध्याय 11 श्लोक 11 - 19 , BG 11 - 19 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 11 श्लोक 19
आप आदि, मध्य तथा अन्त से रहित हैं | आपका यश अनन्त है | आपकी असंख्यभुजाएँ हैं और सूर्य चन्द्रमा आपकी आँखें हैं | मैं आपके मुख से प्रज्जवलित अग्निनिकलते और आपके तेज से इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को जलाते हुए देख रहा हूँ |अध्याय 11 श्लोक 11 - 18 , BG 11 - 18 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 11 श्लोक 18
आप परम आद्य ज्ञेय वास्तु हैं | आप इस ब्रह्माण्ड के परम आधार (आश्रय) हैं | आप अव्यय तथा पुराण पुरुष हैं | आप सनातन धर्म के पालक भगवान् हैं | यही मेरा मत है |अध्याय 11 श्लोक 11 - 17 , BG 11 - 17 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 11 श्लोक 17
आपके रूप को उसके चकाचौंध के कारण देख पाना कठिन है, क्योंकि वह प्रज्जवलित अग्नि कि भाँति अथवा सूर्य के अपार प्रकाश की भाँति चारों ओर फैल रहा है | तो भी मैं इस तेजोमय रूप को सर्वत्र देख रहा हूँ, जो अनेक मुकुटों, गदाओं तथा चक्रों से विभूषित है |अध्याय 11 श्लोक 11 - 16 , BG 11 - 16 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 11 श्लोक 16
हे विश्र्वेश्र्वर, हे विश्र्वरूप! मैं आपके शरीर में अनेकानेक हाथ, पेट, मुँह तथा आँखें देख रहा हूँ, जो सर्वत्र फैले हैं और जिनका अन्त नहीं है | आपमें न अन्त दीखता है, न मध्य और न आदि |अध्याय 11 श्लोक 11 - 15 , BG 11 - 15 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 11 श्लोक 15
अर्जुन ने कहा – हे भगवान् कृष्ण! मैं आपके शरीर में सारे देवताओं तथा अन्य विविध जीवों को एकत्र देख रहा हूँ | मैं कमल पर आसीन ब्रह्मा, शिवजी तथा समस्त ऋषियों एवं दिव्य सर्पों को देख रहा हूँ |अध्याय 11 श्लोक 11 - 14 , BG 11 - 14 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 11 श्लोक 14
तब मोहग्रस्त एवं आश्चर्यचकित रोमांचित हुए अर्जुन ने प्रणाम करने के लिए मस्तक झुकाया और वह हाथ जोड़कर भगवान् से प्रार्थना करने लगा|अध्याय 11 श्लोक 11 - 13 , BG 11 - 13 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 11 श्लोक 13
उस समय अर्जुन भगवान् के विश्र्वरूप में एक ही स्थान पर स्थित हजारोंभागों में विभक्त ब्रह्माण्ड के अनन्त अंशों को देख सका |
अध्याय 11 श्लोक 11 - 12 , BG 11 - 12 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 11 श्लोक 12
यदि आकाश में हजारों सूर्य एकसाथ उदय हों, तो उनका प्रकाश शायद परमपुरुष के इस विश्र्वरूप के तेज की समता कर सके |
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