अध्याय 6 श्लोक 47
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Saturday, 28 March 2015
अध्याय 6 श्लोक 6 - 47 , BG 6 - 47 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 6 श्लोक 6 - 46 , BG 6 - 46 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 6 श्लोक 46
अध्याय 6 श्लोक 6 - 45 , BG 6 - 45 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 6 श्लोक 45
अध्याय 6 श्लोक 6 - 44 , BG 6 - 44 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 6 श्लोक 44
अपने पूर्वजन्म की दैवी चेतना से वह न चाहते हुए भी स्वतः योग के नियमों की ओर आकर्षित होता है | ऐसा जिज्ञासु योगी शास्त्रों के अनुष्ठानों से परे स्थित होता है |
अध्याय 6 श्लोक 6 - 43 , BG 6 - 43 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 6 श्लोक 43
हे कुरुनन्दन! ऐसा जन्म पाकर वह अपने पूर्वजन्म की दैवी चेतना को पुनः प्राप्त करता है और पूर्ण सफलता प्राप्त करने के उद्देश्य से वह आगे उन्नति करने का प्रयास करता है |
अध्याय 6 श्लोक 6 - 42 , BG 6 - 42 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 6 श्लोक 42
अथवा (यदि दीर्घकाल तक योग करने के बाद असफल रहे तो) वह ऐसे योगियों के कुल में जन्म लेता है जो अति बुद्धिमान हैं | निश्चय ही इस संसार में ऐसा जन्म दुर्लभ है |
अध्याय 6 श्लोक 6 - 41 , BG 6 - 41 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 6 श्लोक 41
असफल योगी पवित्रात्माओं के लोकों में अनेकानेक वर्षों तक भोग करने के बाद या तो सदाचारी पुरुषों के परिवार में या धनवानों के कुल में जन्म लेता है |
अध्याय 6 श्लोक 6 - 40 , BG 6 - 40 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 6 श्लोक 40
भगवान् ने कहा – हे पृथापुत्र! कल्याण-कार्यों में निरत योगी का न तो इस लोक में और न परलोक में ही विनाश होता है | हे मित्र! भलाई करने वाला कभी बुरे से पराजित नहीं होता |
अध्याय 6 श्लोक 6 - 39 , BG 6 - 39 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 6 श्लोक 39
हे कृष्ण! यही मेरा सन्देह है, और मैं आपसे इसे पूर्णतया दूर करने की प्रार्थना कर रहा हूँ | आपके अतिरिक्त अन्य कोई ऐसा नहीं है, जो इस सन्देह को नष्ट कर सके |
अध्याय 6 श्लोक 6 - 38 , BG 6 - 38 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 6 श्लोक 38
हे महाबाहु कृष्ण! क्या ब्रह्म-प्राप्ति के मार्ग से भ्रष्ट ऐसा व्यक्ति आध्यात्मिक तथा भौतिक दोनों ही सफलताओं से च्युत नहीं होता और छिन्नभिन्न बादल की भाँति विनष्ट नहीं हो जाता जिसके फलस्वरूप उसके लिए किसी लोक में कोई स्थान नहीं रहता?
अध्याय 6 श्लोक 6 - 37 , BG 6 - 37 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 6 श्लोक 37
अर्जुन ने कहा: हे कृष्ण! उस असफल योगी की गति क्या है जो प्रारम्भ में श्रद्धापूर्वक आत्म-साक्षात्कार की विधि ग्रहण करता है, किन्तु बाद में भौतिकता के करण उससे विचलित हो जाता है और योगसिद्धि को प्राप्त नहीं कर पाता ?
अध्याय 6 श्लोक 6 - 36 , BG 6 - 36 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 6 श्लोक 36
जिसका मन उच्छृंखल है, उसके लिए आत्म-साक्षात्कार कठिन कार्य होता है, किन्तु जिसका मन संयमित है और जो समुचित उपाय करता है उसकी सफलता ध्रुव है | ऐसा मेरा मत है |
अध्याय 6 श्लोक 6 - 35 , BG 6 - 35 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 6 श्लोक 35
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा – हे महाबाहो कुन्तीपुत्र! निस्सन्देह चंचल मन को वश में करना अत्यन्त कठिन है; किन्तु उपयुक्त अभ्यास द्वारा तथा विरक्ति द्वारा ऐसा सम्भव है |
अध्याय 6 श्लोक 6 - 34 , BG 6 - 34 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 6 श्लोक 34
हे कृष्ण! चूँकि मन चंचल (अस्थिर), उच्छृंखल, हठीला तथा अत्यन्त बलवान है, अतः मुझे इसे वश में करना वायु को वश में करने से भी अधिक कठिन लगता है |
अध्याय 6 श्लोक 6 - 33 , BG 6 - 33 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 6 श्लोक 33
अर्जुन ने कहा – हे मधुसूदन! आपने जिस योगपद्धति का संक्षेप में वर्णन किया है, वह मेरे लिए अव्यावहारिक तथा असहनीय है, क्योंकि मन चंचल तथा अस्थिर है |
अध्याय 6 श्लोक 6 - 32 , BG 6 - 32 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 6 श्लोक 32
हे अर्जुन! वह पूर्णयोगी है जो अपनी तुलना से समस्त प्राणियों की उनके सुखों तथा दुखों में वास्तविक समानता का दर्शन करता है |
हे अर्जुन! वह पूर्णयोगी है जो अपनी तुलना से समस्त प्राणियों की उनके सुखों तथा दुखों में वास्तविक समानता का दर्शन करता है |
अध्याय 6 श्लोक 6 - 31 , BG 6 - 31 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 6 श्लोक 31
जो योगी मुझे तथा परमात्मा को अभिन्न जानते हुए परमात्मा की भक्तिपूर्वक सेवा करता है, वह हर प्रकार से मुझमें सदैव स्थित रहता है |
जो योगी मुझे तथा परमात्मा को अभिन्न जानते हुए परमात्मा की भक्तिपूर्वक सेवा करता है, वह हर प्रकार से मुझमें सदैव स्थित रहता है |
Saturday, 7 March 2015
अध्याय 6 श्लोक 6 - 30 , BG 6 - 30 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 6 श्लोक 30
जो मुझे सर्वत्र देखता है और सब कुछ मुझमें देखता है उसके लिए न तो मैं कभी अदृश्य होता हूँ और न वह मेरे लिए अदृश्य होता है |
जो मुझे सर्वत्र देखता है और सब कुछ मुझमें देखता है उसके लिए न तो मैं कभी अदृश्य होता हूँ और न वह मेरे लिए अदृश्य होता है |
अध्याय 6 श्लोक 6 - 29 , BG 6 - 29 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 6 श्लोक 29
अध्याय 6 श्लोक 6 - 28 , BG 6 - 28 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 6 श्लोक 28
अध्याय 6 श्लोक 6 - 27 , BG 6 - 27 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 6 श्लोक 27
जिस योगी का मन मुझ में स्थिर रहता है, वह निश्चय ही दिव्यसुख की सर्वोच्च सिद्धि प्राप्त करता है | वह रजोगुण से परे हो जाता है, वह परमात्मा के साथ अपनी गुणात्मक एकता को समझता है और इस प्रकार अपने समस्त विगत कर्मों के फल से निवृत्त हो जाता है |
अध्याय 6 श्लोक 6 - 26 , BG 6 - 26 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 6 श्लोक 26
मन अपनी चंचलता तथा अस्थिरता के कारण जहाँ कहीं भी विचरण
करता हो,मनुष्य को चाहिए कि उसे वहाँ से खींचे और अपने वश में लाए |
करता हो,मनुष्य को चाहिए कि उसे वहाँ से खींचे और अपने वश में लाए |
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