अध्याय 15 श्लोक 18
चूँकि मैं क्षर तथा अक्षर दोनों के परे हूँ और चूँकि मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ, अतएव मैं इस जगत् में तथा वेदों में परम पुरुष के रूप में विख्यात हूँ |
अध्याय 15 : पुरुषोत्तम योग
श्लोक 15.18
यस्मात्क्षरमतीतोSहमक्षरादपि चोत्तमः |
यस्मात्क्षरमतीतोSहमक्षरादपि चोत्तमः |
अतोSस्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरुषोत्तमः || १८ ||
यस्मात् - चूँकि; क्षरम् - च्युत; अतीतः - दिव्य; अहम् - मैं हूँ; अक्षरात् - अक्षर के परे; अपि - भी; च - तथा; उत्तमः - सर्वश्रेष्ठ; अतः - अतएव; अस्मि - मैं हूँ; लोके - संसार में; वेदे - वैदिक साहित्य में; च - तथा; प्रथितः - विख्यात; पुरुष-उत्तमः - परम पुरुष के रूप में |
भावार्थ
चूँकि मैं क्षर तथा अक्षर दोनों के परे हूँ और चूँकि मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ, अतएव मैं इस जगत् में तथा वेदों में परम पुरुष के रूप में विख्यात हूँ |
भावार्थ
चूँकि मैं क्षर तथा अक्षर दोनों के परे हूँ और चूँकि मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ, अतएव मैं इस जगत् में तथा वेदों में परम पुरुष के रूप में विख्यात हूँ |
तात्पर्य
भगवान् कृष्ण से बढ़कर कोई नहीं है - न बद्धजीव न मुक्त जीव | अतएव वे पुरुषोत्तम हैं | अब यह स्पष्ट हो चुका है कि जीव तथा भगवान् व्यष्टि हैं | अन्तर इतना है कि जीव चाहे बद्ध अवस्था में रहे या मुक्त अवस्था में, वह शक्ति में भगवान् की अकल्पनीय शक्तियों से बढ़कर नहीं हो सकता | यह सोचना गलत है कि भगवान् तथा जीव समान स्तर पर हैं या सब प्रकार से एकसमान हैं | इनके व्यक्तित्त्वों में सदैव श्रेष्ठता तथा निम्नता बनी रहती है | उत्तम शब्द अत्यन्त सार्थक है | भगवान् से बढ़कर कोई नहीं है |
लोके शब्द "पौरुष आगम (स्मृति-शास्त्र) में" के लिए आया है | जैसा कि निरुक्ति कोश में पुष्टि की गई है - लोक्यते वेदार्थोऽनेन - : वेदों के प्रयोजन स्मृति-शास्त्रों में विवेचित है |
"भगवान् के अन्तर्यामी परमात्मा स्वरूप का भी वेदों में वर्णन हुआ है | निम्नलिखित श्लोक वेदों में (छान्दोग्य उपनिषद् ८.१२.३) आया है - तावदेष सम्प्रसादोऽस्माच्छरीरात्समुत्थाय परं ज्योतिरूप सम्पद्य स्वेन रूपेणाभिनिष्पद्यते स उत्तमः पुरुषः | "शरीर से निकल कर परम आत्मा का प्रवेश निराकार ब्रह्मज्योति में होता है | तब वे अपने इस आध्यात्मिक स्वरूप में बने रहते हैं | यह परम आत्मा ही परम पुरुष कहलाता है |" इसका अर्थ यह हुआ कि परम पुरुष अपना आध्यात्मिक तेज प्रकट करते तथा प्रसारित करते रहते हैं और यही चरम प्रकाश है | उस परम पुरुष का एक स्वरूप है अन्तर्यामी परमात्मा | भगवान् सत्यवती तथा पराशर के पुत्ररूप में अवतार ग्रहण कर व्यासदेव के रूप में वैदिक ज्ञान की व्याख्या करते हैं |
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