अध्याय 2 श्लोक 72
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Monday, 22 April 2013
अध्याय 2 श्लोक 2 - 71 , BG 2 - 71 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 71
जिस व्यक्ति ने इन्द्रियतृप्ति की समस्त इच्छाओं का परित्याग कर दिया है, जो इच्छाओं से रहित रहता है और जिसने सारी ममता त्याग दी है तथा अहंकार से रहित है, वही वास्तविक शान्ति प्राप्त कर सकता है |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 70 , BG 2 - 70 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 70
जो पुरुष समुद्र में निरन्तर प्रवेश करती रहने वाली नदियों के समान इच्छाओं के निरन्तर प्रवाह से विचलित नहीं होता और जो सदैव स्थिर रहता है, वही शान्ति प्राप्त कर सकता है, वह नहीं, जो ऐसी इच्छाओं को तुष्ट करने की चेष्ठा करता हो |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 69 , BG 2 - 69 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 69
जो सब जीवों के लिए रात्रि है, वह आत्मसंयमी के जागने का समय है और जो समस्त जीवों के जागने का समय है वह आत्मनिरीक्षक मुनि के लिए रात्रि है |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 68 , BG 2 - 68 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 68
अतः हे महाबाहु! जिस पुरुष की इन्द्रियाँ अपने-अपने विषयों से सब प्रकार से विरत होकर उसके वश में हैं, उसी की बुद्धि निस्सन्देह स्थिर है |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 67 , BG 2 - 67 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 67
जिस प्रकार पानी में तैरती नाव को प्रचण्ड वायु दूर बहा ले जाती है उसी प्रकार विचरणशील इन्द्रियों में से कोई एक जिस पर मन निरन्तर लगा रहता है, मनुष्य की बुद्धि को हर लेती है |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 66 , BG 2 - 66 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 66
जो कृष्णभावनामृत में परमेश्र्वर से सम्बन्धित नहीं है उसकी न तो बुद्धि दिव्य होती है और न ही मन स्थिर होता है जिसके बिना शान्ति की कोई सम्भावना नहीं है | शान्ति के बिना सुख हो भी कैसे सकता है?
अध्याय 2 श्लोक 2 - 65 , BG 2 - 65 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 65
इस प्रकार कृष्णभावनामृत में तुष्ट व्यक्ति के लिए संसार के तीनों ताप नष्ट हो जाते हैं और ऐसी तुष्ट चेतना होने पर उसकी बुद्धि शीघ्र ही स्थिर हो जाती है |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 64 , BG 2 - 64 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 64
किन्तु समस्त राग तथा द्वेष से मुक्त एवं अपनी इन्द्रियों को संयम द्वारा वश में करने में समर्थ व्यक्ति भगवान् की पूर्ण कृपा प्राप्त कर सकता है |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 63 , BG 2 - 63 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 63
क्रोध से पूर्ण मोह उत्पन्न होता है और मोह से स्मरणशक्ति का विभ्रम हो जाता है | जब स्मरणशक्ति भ्रमित हो जाति है, तो बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि नष्ट होने पर मनुष्य भव-कूप में पुनः गिर जाता है |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 62 , BG 2 - 62 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 62
इन्द्रियाविषयों का चिन्तन करते हुए मनुष्य की उनमें आसक्ति उत्पन्न हो जाति है और ऐसी आसक्ति से काम उत्पन्न होता है और फिर काम से क्रोध प्रकट होता है |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 61 , BG 2 - 61 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 61
जो इन्द्रियों को पूर्णतया वश में रखते हुए इन्द्रिय-संयमन करता है और अपनी चेतना को मुझमें स्थिर कर देता है, वह मनुष्य स्थिरबुद्धि कहलाता है |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 60 , BG 2 - 60 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 60
हे अर्जुन! इन्द्रियाँ इतनी प्रबल तथा वेगवान हैं कि वे उस विवेकी पुरुष के मन को भी बलपूर्वक हर लेती हैं, जो उन्हें वश में करने का प्रयत्न करता है |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 59 , BG 2 - 59 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 59
देहधारी जीव इन्द्रियभोग से भले ही निवृत्त हो जाय पर उसमें इन्द्रियभोगों की इच्छा बनी रहती है | लेकिन उत्तम रस के अनुभव होने से ऐसे कार्यों को बंद करने पर वह भक्ति में स्थिर हो जाता है |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 58 , BG 2 - 58 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 58
जिस प्रकार कछुवा अपने अंगो को संकुचित करके खोल के भीतर कर लेता है, उसी तरह जो मनुष्य अपनी इन्द्रियों को इन्द्रियविषयों से खीँच लेता है, वह पूर्ण चेतना में दृढ़तापूर्वक स्थिर होता है |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 57 , BG 2 - 57 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 57
इस भौतिक जगत् में जो व्यक्ति न तो शुभ की प्राप्ति से हर्षित होता है और न अशुभ के प्राप्त होने पर उससे घृणा करता है, वह पूर्ण ज्ञान में स्थिर होता है |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 56 , BG 2 - 56 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 56
जो त्रय तापों के होने पर भी मन में विचलित नहीं होता अथवा सुख में प्रसन्न नहीं होता और जो आसक्ति, भय तथा क्रोध से मुक्त है, वह स्थिर मन वाला मुनि कहलाता है |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 55 , BG 2 - 55 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 55
श्रीभगवान् ने कहा – हे पार्थ! जब मनुष्य मनोधर्म से उत्पन्न होने वाली इन्द्रियतृप्ति की समस्त कामनाओं का परित्याग कर देता है और जब इस तरह से विशुद्ध हुआ उसका मन आत्मा में सन्तोष प्राप्त करता है तो वह विशुद्ध दिव्य चेतना को प्राप्त (स्थितप्रज्ञ) कहा जाता है |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 54 , BG 2 - 54 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 54
अर्जुन ने कहा – हे कृष्ण! अध्यात्म में लीन चेतना वाले व्यक्ति (स्थितप्रज्ञ) के क्या लक्षण हैं? वह कैसे बोलता है तथा उसकी भाषा क्या है? वह किस तरह बैठता और चलता है?
अध्याय 2 श्लोक 2 - 53 , BG 2 - 53 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 53
जब तुम्हारा मन वेदों की अलंकारमयी भाषा से विचलित न हो और वह आत्म-साक्षात्कार की समाधि में स्थिर हो जाय, तब तुम्हें दिव्य चेतना प्राप्त हो जायेगी |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 52 , BG 2 - 52 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 52
जब तुम्हारी बुद्धि मोह रूपी सघन वन को पार कर जायेगी तो तुम सुने हुए तथा सुनने योग्य सब के प्रति अन्यमनस्क हो जाओगे |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 51 , BG 2 - 51 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 51
इस तरह भगवद्भक्ति में लगे रहकर बड़े-बड़े ऋषि, मुनि अथवा भक्तगण अपने आपको इस भौतिक संसार में कर्म के फलों से मुक्त कर लेते हैं | इस प्रकार वे जन्म-मृत्यु के चक्र से छूट जाते हैं और भगवान् के पास जाकर उस अवस्था को प्राप्त करते हैं, जो समस्त दुखों से परे है |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 50 , BG 2 - 50 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 50
भक्ति में संलग्न मनुष्य इस जीवन में ही अच्छे तथा बुरे कार्यों से अपने को मुक्त कर लेता है | अतः योग के लिए प्रयत्न करो क्योंकि सारा कार्य-कौशल यही है |
अध्याय 2 श्लोक 2 - 49 , BG 2 - 49 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 2 श्लोक 49
हे धनंजय! भक्ति के द्वारा समस्त गर्हित कर्मों से दूर रहो और उसी भाव से भगवान् की शरण करो | जो व्यक्ति अपने सकाम कर्म-फलों को भोगना चाहते हैं, वे कृपण हैं |
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