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Sunday 5 April 2020

अध्याय 18 श्लोक 18 - 7 , BG 18 - 7 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 18 श्लोक 7


निर्दिष्ट कर्तव्यों को कभी नहीं त्यागना चाहिए । यदि कोई मोहवश अपने नियत कर्मों का परित्याग कर देता है, तो ऐसे त्याग को तामसी कहा जाता है ।


अध्याय 18 : उपसंहार - संन्यास की सिद्धि

श्लोक 18.7






नियतस्य तु संन्यासः कर्मणो नोपपद्यते |

मोहात्तस्य परित्यागस्तामसः परिकीर्तितः || ७ ||
.






नियतस्य - नियत, निर्दिष्ट (कार्य) का; तु - लेकिन; संन्यासः - संन्यास, त्याग; कर्मणः - कर्मों का;- कभी नहीं; उपपद्यते - योग्य होता है; मोहात् - मोहवश; तस्य - उसका; परित्यागः - त्याग देना; तामसः - तमो गुणी; परिकीर्तितः -घोषित किया जाता है ।



भावार्थ


निर्दिष्ट कर्तव्यों को कभी नहीं त्यागना चाहिए । यदि कोई मोहवश अपने नियत कर्मों का परित्याग कर देता है, तो ऐसे त्याग को तामसी कहा जाता है ।



तात्पर्य






जो कार्य भौतिक तुष्टि के लिए किया जाता है, उसे अवश्य ही त्याग दे, लेकिन जिन कार्यों से आध्यात्मिक उन्नति हो, यथा भगवान् के लिए भोजन बनाना, भगवान् को भोग अर्पित करना, फिर प्रसाद ग्रहण करना, उसकी संस्तुति की जाती है । कहा जाता है कि संन्यासी को अपने लिए भोजन नहीं बनाना चाहिए । लेकिन अपने लिए भोजन पकाना भले ही वर्जित हो, परमेश्र्वर के लिए भोजन पकाना वर्जित नहीं है । इसी प्रकार अपने शिष्य की कृष्णभावनामृत में प्रगति करने में सहायक बनने के लिए संन्यासी विवाह-यज्ञ सम्पन्न करा सकता है । यदि कोई ऐसे कार्यों का परित्याग कर देता है, तो यह समझना चाहिए कि वह तमोगुण के अधीन है ।






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