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Saturday 4 April 2020

अध्याय 17 श्लोक 17 - 12 , BG 17 - 12 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 17 श्लोक 12


लेकिन हे भरतश्रेष्ठ! जो यज्ञ किसी भौतिक लाभ के लिए गर्ववश किया जाता है, उसे तुम राजसी जानो |


अध्याय 17 : श्रद्धा के विभाग

श्लोक 17.12



अभिसन्धाय तु फलं दम्भार्थमपि चैव यत् |

इज्यते भरतश्रेष्ठ तं यज्ञं विद्धि राजसम् || १२ ||




अभिसन्धाय - इच्छा कर के; तु - लेकिन; फलम् - फल को; दम्भ - घमंड; अर्थम् - के लिए; अपि - भी; - तथा; एव - निश्चय ही; यत् - जो; इज्यते - किया जाता है; भरत-श्रेष्ठ - हे भरतवंशियों में प्रमुख; तम् - उस; यज्ञम् - यज्ञ को; विद्धि - जानो; राजसम् - रजोगुणी |




भावार्थ




लेकिन हे भरतश्रेष्ठ! जो यज्ञ किसी भौतिक लाभ के लिए गर्ववश किया जाता है, उसे तुम राजसी जानो |


तात्पर्य




कभी-कभी स्वर्गलोक पहुँचने या किसी भौतिक लाभ के लिए यज्ञ तथा अनुष्ठान किये जाते हैं | ऐसे यज्ञ या अनुष्ठान राजसी माने जाते हैं |





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