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Sunday 5 April 2020

अध्याय 18 श्लोक 18 - 28 , BG 18 - 28 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 18 श्लोक 28


जो कर्ता सदा शास्त्रों के आदेशों के विरुद्ध कार्य करता रहता है, जो भौतिकवादी, हठी, कपटी तथा अन्यों का अपमान करने में पटु है और तथा जो आलसी, सदैव खिन्न तथा काम करने में दीर्घसूत्री है, वह तमोगुणी कहलाता है |


अध्याय 18 : उपसंहार - संन्यास की सिद्धि

श्लोक 18.28




अयुक्तः प्राकृतः स्तब्धः शठो नैष्कृतिकोऽलसः |

विषादी दीर्घसूत्री च कर्ता तामस उच्यते || २८ ||
.





अयुक्तः– शास्त्रों के आदेशों को न मानने वाला; प्राकृतः– भौतिकवादी; स्तब्धः– हठी; शठः– कपटी; नैष्कृतिकः– अन्यों का अपमान करने में पटु; अलसः– आलसी; विषादी– खिन्न;दीर्घ-सूत्री– ऊँघ-ऊँघ कर काम करने वाला, देर लगाने वाला; – भी; कर्ता– कर्ता; तामसः– तमोगुणी; उच्यते– कहलाता है |



भावार्थ



जो कर्ता सदा शास्त्रों के आदेशों के विरुद्ध कार्य करता रहता है, जो भौतिकवादी, हठी, कपटी तथा अन्यों का अपमान करने में पटु है और तथा जो आलसी, सदैव खिन्न तथा काम करने में दीर्घसूत्री है, वह तमोगुणी कहलाता है |




तात्पर्य




शास्त्रीय आदेशों से हमें पता चलता है कि हमें कौन सा काम करना चाहिए और कौन सा नहीं करना चाहिए | जो लोग शास्त्रों के आदेशों की अवहेलना करके अकरणीय कार्य करते हैं, प्रायः भौतिकवादी होते हैं | वे प्रकृति के गुणों के अनुसार कार्य करते हैं, शास्त्रों के आदेशों के अनुसार नहीं | ऐसे कर्ता भद्र नहीं होते और सामान्यतया सदैव कपटी (धूर्त) तथा अन्यों का अपमान करने वाले होते हैं | वे अत्यन्त आलसी होते हैं, काम होते हुए भी उसे ठीक से नहीं करते और बाद में करने के लिए उसे एक तरफ रख देते हैं, अतएव वे खिन्न रहते हैं | जो काम एक घंटे में हो सकता है, उसे वे वर्षों तक घसीटते हैं-वे दीर्घसूत्री होते हैं | ऐसे कर्ता तमोगुणी होते हैं |






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