Translate

Saturday 4 April 2020

अध्याय 17 श्लोक 17 - 22 , BG 17 - 22 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 17 श्लोक 22


तथा जो दान किसी अपवित्र स्थान में, अनुचित समय में, किसी अयोग्य व्यक्ति को या बिना समुचित ध्यान तथा आदर से दिया जाता है, वह तामसी कहलाता है ।


अध्याय 17 : श्रद्धा के विभाग

श्लोक 17.22





अदेशकाले यद्दानमपात्रेभ्यश्र्च दीयते |

असत्कृतमवज्ञातं तत्तामसमुदाहृतम् || २२ ||
.





अदेश - अशुद्ध स्थान; काले - तथा अशुद्ध समय में; यत् - जो; दानम् - दान; अपात्रेभ्यः - अयोग्य व्यक्तियों को; - भी; दीयते - दिया जाता है; असत्-कृतम् - सम्मान के बिना; अवज्ञातम् - समुचित ध्यान दिये बिना; तत् - वह; तामसम् - तमोगुणी; उदाहृताम् - कहा जाता है ।



भावार्थ


तथा जो दान किसी अपवित्र स्थान में, अनुचित समय में, किसी अयोग्य व्यक्ति को या बिना समुचित ध्यान तथा आदर से दिया जाता है, वह तामसी कहलाता है ।


तात्पर्य




यहाँ पर मद्यपान तथा द्यूतक्रीड़ा में व्यसनी के लिए दान देने को प्रोत्साहन नहीं दिया गया । ऐसा दान तामसी है । ऐसा दान लाभदायक नहीं होता, वरन् इससे पापी पुरुषों को प्रोत्साहन मिलता है । इसी प्रकार, यदि बिना सम्मान तथा ध्यान दिये किसी उपयुक्त व्यक्ति को दान दिया जाय, तो वह भी तामसी है ।




<< © सर्वाधिकार सुरक्षित भक्तिवेदांत बुक ट्रस्ट >>




Note : All material used here belongs only and only to BBT .
For Spreading The Message Of Bhagavad Gita As It Is 
By Srila Prabhupada in Hindi ,This is an attempt to make it available online , 
if BBT have any objection it will be removed .

No comments:

Post a Comment

Hare Krishna !!