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Sunday 5 April 2020

अध्याय 18 श्लोक 18 - 56 , BG 18 - 56 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 18 श्लोक 56


मेरा शुद्ध भक्त मेरे संरक्षण में, समस्त प्रकार के कार्यों में संलग्न रह कर भी मेरी कृपा से नित्य तथा अविनाशी धाम को प्राप्त होता है |


अध्याय 18 : उपसंहार - संन्यास की सिद्धि

श्लोक 18.56






सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद्व्यपाश्रयः |

मत्प्रसादादवाप्नोति शाश्र्वतं पदमव्ययम् || ५६ ||




सर्व– समस्त; कर्माणि– कार्यकलाप को; अपि– यद्यपि;सदा– सदैव; कुर्वाणः– करते हुए; मत्-व्यपाश्रयः – मेरे संरक्षण में; मत्-प्रसादात्– मेरी कृपा से; अवाप्नोति– प्राप्त करता है; शाश्र्वतम्– नित्य; पदम्– धाम को; अव्ययम्– अविनाशी |



भावार्थ





मेरा शुद्ध भक्त मेरे संरक्षण में, समस्त प्रकार के कार्यों में संलग्न रह कर भी मेरी कृपा से नित्य तथा अविनाशी धाम को प्राप्त होता है |





तात्पर्य




मद्-व्यपाश्रयः शब्द का अर्थ है परमेश्र्वर के संरक्षण में | भौतिक कल्मष से रहित होने के लिए शुद्ध भक्त परमेश्र्वर या उनके प्रतिनिधि स्वरूप गुरु के निर्देशन में कर्म करता है | उसके लिए समय की कोई सीमा नहीं है | वह सदा, चौबीसों घंटे, शत प्रतिशत परमेश्र्वर के निर्देशन में कार्यों में संलग्न रहता है | ऐसे भक्त पर जो कृष्णभावनामृत में रत रहता है, भगवान् अत्यधिक दयालु होते हैं | वह समस्त कठिनाइयों के बावजूद अन्ततोगत्वा दिव्यधाम या कृष्णलोक को प्राप्त करता है | वहाँ उसका प्रवेश सुनिश्चित रहता है, इसमें कोई संशय नहीं है | उस परम धाम में कोई परिवर्तन नहीं होता, वहाँ प्रत्येक वस्तु शाश्र्वत, अविनश्र्वर तथा ज्ञानमय होती है |







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