अध्याय 4 श्लोक 12
इस संसार में मनुष्य सकाम कर्मों में सिद्धि चाहते हैं, फलस्वरूप वे देवताओं की पूजा करते हैं | निस्सन्देह इस संसार में मनुष्यों को सकाम कर्म का फल शीघ्र प्राप्त होता है |
अध्याय 4 : दिव्य ज्ञान
श्लोक 4 . 12
काङ्न्तः कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवताः |
क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा || १२ ||
क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा || १२ ||
काङ्क्षन्तः – चाहते हुए; कर्मणाम् – सकाम
कर्मों की; सिद्धिम् – सिद्धि; यजन्ते – यज्ञों द्वारा पूजा करते हैं; इह -
इस भौतिक जगत् में; देवताः – देवतागण; क्षिप्रम् – तुरन्त ही; हि – निश्चय
ही; मानुषे – मानव समाज में; लोके – इस संसार में; सिद्धिः – सिद्धि,
सफलता; भवति – होती है; कर्म-जा – सकाम कर्म से |
भावार्थ
इस संसार में मनुष्य सकाम कर्मों में सिद्धि चाहते हैं, फलस्वरूप वे देवताओं की पूजा करते हैं | निस्सन्देह इस संसार में मनुष्यों को सकाम कर्म का फल शीघ्र प्राप्त होता है |
तात्पर्य
इस जगत् के
देवताओं के विषय में भ्रान्त धारणा है और विद्वता का दम्भ करने वाले
अल्पज्ञ मनुष्य इन देवताओं को परमेश्र्वर के विभिन्न रूप मान बैठते हैं |
वस्तुतः ये देवता ईश्र्वर के विभिन्न रूप नहीं होते , किन्तु वे ईश्र्वर के
विभिन्न अंश होते हैं | ईश्र्वर तो एक है, किन्तु अंश अनेक हैं | वेदों का
कथन है – नित्यो नित्यनाम् | ईश्र्वर एक है | इश्र्वरः परमः कृष्णः |
कृष्ण ही एकमात्र परमेश्र्वर हैं और सभी देवताओं को इस भौतिक जगत् का
प्रबन्ध करने के लिए शक्तियाँ प्राप्त हैं | वे कभी परमेश्र्वर – नारायण,
विष्णु या कृष्ण के तुल्य नहीं हो सकते | जो व्यक्ति ईश्र्वर तथा देवताओं
को एक स्तर पर सोचता है, वह नास्तिक या पाषंडी कहलाता है | यहाँ तक कि
ब्रह्मा तथा शिवजी जैसे बड़े-बड़े देवता परमेश्र्वर की समता नहीं कर सकते |
वास्तव में ब्रह्मा तथा शिव जैसे देवताओं द्वारा भगवान् की पूजा की जाती
है (शिवविरिञ्चिनुतम्) | तो भी आश्चर्य की बात यह है कि अनेक मुर्ख लोग
मनुष्यों के नेताओं की पूजा उन्हें अवतार मान कर करते हैं | इह देवताः पास
इस संसार के शक्तिशाली मनुष्य या देवता के लिए आया है , लेकिन नारायण,
विष्णु या कृष्ण जैसे भगवान् इस संसार के नहीं हैं | वे भौतिक सृष्टि से
परे रहने वाले हैं | निर्विशेषवादियों के अग्रणी श्रीपाद शंकराचार्य तक
मानते हैं कि नारायण या कृष्ण इस भौतिक सृष्टि से परे हैं फिर भी मुर्ख लोग
(हतज्ञान) देवताओं की पूजा करते हैं, क्योंकि वे तत्काल फल चाहते हैं |
उन्हें फल मिलता भी है, किन्तु वे यह नहीं जानते की ऐसे फल क्षणिक होते हैं
और अल्पज्ञ मनुष्यों के लिए हैं | बुद्धिमान् व्यक्ति कृष्णभावनामृत में
स्थित रहता है | उसे किसी तत्काल क्षणिक लाभ के लिए किसी तुच्छ देवता की
पूजा करने की आवश्यकता नहीं रहती | इस संसार के देवता तथा उनके पूजक, इस
संसार के संहार के साथ ही विनष्ट हो जाएँगे | देवताओं के वरदान भी भौतिक
तथा क्षणिक होते हैं | यह भौतिक संसार तथा इसके निवासी, जिनमें देवता तथा
उनके पूजक भी सम्मिलित हैं, विराट सागर में बुलबुलों के समान हैं | किन्तु
इस संसार में मानव समाज क्षणिक वस्तुओं – यथा सम्पत्ति, परिवार तथा भोग की
सामग्री के पीछे पागल रहता है | ऐसी क्षणिक वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए
लोग देवताओं की या मानव समाज के शक्तिशाली व्यक्तियों की पूजा करते हैं |
यदि कोई व्यक्ति किसी राजनीतिक नेता की पूजा करके संसार में मन्त्रिपद
प्राप्त कर लेता है, तो वह सोचता है की उसने महान वरदान प्राप्त कर लिया है
| इसलिए सभी व्यक्ति तथाकथित नेताओं को साष्टांग प्रणाम करते हैं, जिससे
वे क्षणिक वरदान प्राप्त कर सकें और सचमुच उन्हें ऐसी वस्तुएँ मिल भी जाती
हैं | ऐसे मुर्ख व्यक्ति इस संसार के कष्टों के स्थायी निवारण के लिए
कृष्णभावनामृत में अभिरुचि नहीं दिखाते | वे सभी इन्द्रियभोग के पीछे
दीवाने रहते हैं और थोड़े से इन्द्रियसुख के लिए वे शक्तिप्रदत्त-जीवों की
पूजा करते हैं, जिन्हें देवता कहते हैं | यह श्लोक इंगित करता है कि विरले
लोग ही कृष्णभावनामृत में रूचि लेते हैं | अधिकांश लोग भौतिक भोग में रूचि
लेते हैं, फलस्वरूप वे किसी न किसी शक्तिशाली व्यक्ति की पूजा करते हैं |
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