अध्याय 3 श्लोक 26
विद्वान
व्यक्ति को चाहिए कि वह सकाम कर्मों में आसक्त अज्ञानी पुरुषों को कर्म
करने से रोके नहीं ताकि उनके मन विचलित न हों | अपितु भक्तिभाव से कर्म
करते हुए वह उन्हें सभी प्रकार के कार्यों में लगाए (जिससे कृष्णभावनामृत
का क्रमिक विकास हो) |
अध्याय 3 : कर्मयोग
श्लोक 3 . 26
न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङ्गिनाम् |
जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन् || २६ ||
भावार्थ
विद्वान व्यक्ति को चाहिए कि वह सकाम कर्मों में आसक्त अज्ञानी पुरुषों को कर्म करने से रोके नहीं ताकि उनके मन विचलित न हों | अपितु भक्तिभाव से कर्म करते हुए वह उन्हें सभी प्रकार के कार्यों में लगाए (जिससे कृष्णभावनामृत का क्रमिक विकास हो) |
तात्पर्य
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