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Saturday 4 April 2020

अध्याय 17 श्लोक 17 - 7 , BG 17 - 7 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 17 श्लोक 7


यहाँ तक कि प्रत्येक व्यक्ति जो भोजन पसन्द करता है, वह भी प्रकृति के अनुसार तीन प्रकार का होता है । यही बात यज्ञ, तपस्या तथा दान के लिए भी सत्य है । अब उनके भेदों के विषय में सुनो ।


अध्याय 17 : श्रद्धा के विभाग

श्लोक 17.7


आहारस्त्वपि सर्वस्य त्रिविधो भवति प्रियः |

यज्ञस्तपस्तथा दानं तेषां भेदमिमं श्रृणु || ७ ||



आहारः - भोजन; तु - निश्चय ही; अपि - भी; सर्वस्य - हर एक का; त्रि-विधः - तीन प्रकार का; भवति - होता है; प्रियः - प्यारा; यज्ञः - यज्ञ; तपः - तपस्या; तथा - और; दानम् - दान; तेषाम् - उनका; भेदम् - अन्तर; इमम् - यह; शृणु - सुनो ।






भावार्थ




यहाँ तक कि प्रत्येक व्यक्ति जो भोजन पसन्द करता है, वह भी प्रकृति के अनुसार तीन प्रकार का होता है । यही बात यज्ञ, तपस्या तथा दान के लिए भी सत्य है । अब उनके भेदों के विषय में सुनो ।



तात्पर्य



प्रकृति के भिन्न-भिन्न गुणों के अनुसार भोजन, यज्ञ, तपस्या और दान में भेद होते हैं । वे सब एक से नहीं होते । जो लोग यह समझ सकते हैं कि किस गुण में क्या क्या करना चाहिए, वे वास्तव में बुद्धिमान हैं । जो लोग सभी प्रकार के यज्ञ, भोजन या दान को एकसा मानकर उनमें अन्तर नहीं कर पाते, वे अज्ञानी हैं । ऐसे भी प्रचारक लोग हैं, जो यह कहते हैं कि मनुष्य जो चाहे वह कर सकता है और सिद्धि प्राप्त कर सकता है । लेकिन ये मूर्ख मार्गदर्शक शास्त्रों के आदेशानुसार कार्य नहीं करते । ये अपनी विधियाँ बनाते हैं और सामान्य जनता को भ्रान्त करते रहते हैं ।




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