Translate

Saturday 4 April 2020

अध्याय 16 श्लोक 16 - 8 , BG 16 - 8 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 16 श्लोक 8

जो आसुरी हैं , वे यह नहीं जानते कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए । उनमें न तो पवित्रता, न उचित आचरण और न ही सत्य पाया जाता है ।


अध्याय 16 : दैवी और आसुरी स्वभाव

श्लोक 16.8




असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्र्वरम् |

अपरस्परससम्भूतं किमन्यत्कामहैतुकम् || ८ ||






असत्यम् - मिथ्या; अप्रतिष्ठम् - आधाररहित; ते - वे; जगत् - दृश्य जगत्; आहुः - कहते हैं ;अनीश्र्वरम् - बिना नियामक के ;अपरस्पर - बिना कारण के ;सम्भूतम् - उत्पन्न; किम्-अन्यत् - अन्य कोई कारण नहीं है; काम-हैतुकम् - केवल काम के कारण ।





भावार्थ






वे कहते हैं कि यह जगत् मिथ्या है, इसका कोई आधार नहीं है और इसका नियमन किसी ईश्र्वर द्वारा नहीं होता । उनका कहना है कि यह कामेच्छा से उत्पन्न होता है और काम के अतिरिक्त कोई अन्य कारण नहीं है ।



तात्पर्य




आसुरी लोग यह निष्कर्ष निकालते हैं कि यह जगत् मायाजाल है । इसका न कोई कारण है, न कार्य, न नियामक, न कोई प्रयोजन - हर वस्तु मिथ्या है । उनका कहना है कि दृश्य जगत् आकस्मिक भौतिक क्रियाओं तथा प्रतिक्रियाओं के कारण है । वे यह नहीं सोचते कि ईश्र्वर ने किसी प्रयोजन से इस संसार की रचना की है । उनका अपना सिद्धान्त है कि यह संसार अपने आप उत्पन्न हुआ है और यह विश्र्वास करने का कोई कारण नहीं है कि इसके पीछे किसी ईश्र्वर का हाथ है । उनके लिए आत्मा तथा पदार्थ में कोई अन्तर नहीं होता और वे परम आत्मा को स्वीकार नहीं करते । उनके लिए हर वस्तु पदार्थ मात्र है और यह पूरा जगत् मानो अज्ञान का पिण्ड हो । उनके अनुसार प्रत्येक वस्तु शून्य है और जो भी सृष्टि दिखती है, वह केवल दृष्टि-भ्रम के कारण है । वे इसे सच मान बैठते हैं कि विभिन्नता से पूर्ण यह सारी सृष्टि अज्ञान का प्रदर्शन है । जिस प्रकार स्वप्न में हम ऐसी अनेक वस्तुओं की सृष्टि कर सकते हैं, जिनका वास्तव में कोई अस्तित्व नहीं होता, अतएव जब हम जाग जाते हैं, तो देखते हैं कि सब कुछ स्वप्नमात्र था । लेकिन वास्तव में, यद्यपि असुर यह कहते हैं कि जीवन स्वप्न है, लेकिन वे इस स्वप्न को भोगने में बड़े कुशल होते हैं । अतएव वे ज्ञानार्जन करने के बजाय अपने स्वप्नलोक में अधिकाधिक उलझ जाते हैं । उनकी मान्यता है कि जिस प्रकार शिशु केवल स्त्रीपुरुष के सम्भोग का फल है, उसी तरह यह संसार बिना किसी आत्मा के उत्पन्न हुआ है । उनके लिए यह पदार्थ का संयोगमात्र है, जिसने जीवों को उत्पन्न किया, अतएव आत्मा के अस्तित्व का प्रश्न ही नहीं उठता । जिस प्रकार अनेक जीवित प्राणी आकरण पसीने ही से (स्वेदज) तथा मृत शरीर से उत्पन्न हो जाते हैं, उसी प्रकार यह सारा जीवित संसार दृश्य जगत् के भौतिक संयोगों से प्रकट हुआ है । अतएव प्रकृति ही इस संसार की कारणस्वरूपा है, इसका कोई अन्य कारण नहीं है । वे भगवद्गीता में कहे गये कृष्ण के इन वचनों को नहीं मानते - मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम् - सारा भौतिक जगत् मेरे ही निर्देश के अन्तर्गत गतिशील है । दूसरे शब्दों में, असुरों को संसार की सृष्टि के विषय में पूरा-पूरा ज्ञान नहीं है, प्रत्येक का अपना कोई न कोई सिद्धान्त है । उनके अनुसार शास्त्रों की कोई एक व्याख्या दूसरी व्याख्या के ही समान है, क्योंकि वे शास्त्रीय आदेशों के मानक ज्ञान में विश्र्वास नहीं करते ।






<< © सर्वाधिकार सुरक्षित भक्तिवेदांत बुक ट्रस्ट >>




Note : All material used here belongs only and only to BBT .
For Spreading The Message Of Bhagavad Gita As It Is 
By Srila Prabhupada in Hindi ,This is an attempt to make it available online , 
if BBT have any objection it will be removed .

No comments:

Post a Comment

Hare Krishna !!