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Saturday 4 April 2020

अध्याय 16 श्लोक 16 - 21 , BG 16 - 21 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 16 श्लोक 21


इस नरक के तीन द्वार हैं - काम, क्रोध और लोभ । प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि इन्हें त्याग दे, क्योंकि इनसे आत्मा का पतन होता है ।


अध्याय 16 : दैवी और आसुरी स्वभाव

श्लोक 16.21




त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः |

कामः क्रोधस्तथा लोभास्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् || २१ ||






त्रिविधम् - तीन प्रकार का; नरकस्य - नरक का; इदम् - यह; द्वारम् - द्वार; नाशनम् - विनाश कारी; आत्मनः - आत्मा का; कामः - काम; क्रोधः - क्रोध; तथा - और; लोभः - लोभ; तस्मात् - अतएव; एतत् - इन; त्रयम् - तीनों को; त्यजेत् - त्याग देना चाहिए ।





भावार्थ



इस नरक के तीन द्वार हैं - काम, क्रोध और लोभ । प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि इन्हें त्याग दे, क्योंकि इनसे आत्मा का पतन होता है ।




तात्पर्य



यहाँ पर आसुरी जीवन आरम्भ होने का वर्णन हुआ है । मनुष्य अपने काम को तुष्ट करना चाहता है, किन्तु जब उसे पूरा नहीं कर पाता तो क्रोध तथा लोभ उत्पन्न होता है । जो बुद्धिमान मनुष्य आसुरी योनि में नहीं गिरना चाहता, उसे चाहिए कि वह इन तीनों शत्रुओं का परित्याग कर दे, क्योंकि ये आत्मा का हनन इस हद तक कर देते हैं कि इस भवबन्धन से मुक्ति की सम्भावना नहीं रह जाती ।






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