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Friday 3 April 2020

अध्याय 13 श्लोक 13 - 32 , BG 13 - 32 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 13 श्लोक 32

शाश्र्वत दृष्टिसम्पन्न लोग यह देख सकते हैं कि अविनाशी आत्मा दिव्य, शाश्र्वत तथा गुणों अतीत है | हे अर्जुन! भौतिक शरीर के साथ सम्पर्क होते हुए भी आत्मा न तो कुछ करता है और न लिप्त होता है |


अध्याय 13 : प्रकृति, पुरुष तथा चेतना

श्लोक 13.32



अनादित्वान्निर्गुणत्वात्परमात्मायमव्ययः |
शरीरस्थोSपि कौन्तेय न करोति न लिप्यते || ३२ ||




अनादित्वात् - नित्यता के कारण; निर्गुणत्वात् - दिव्य होने से; परम - भौतिक प्रकृति से परे; आत्मा - आत्मा; अयम् - यह; अव्ययः - अविनाशी; शरीर-स्थः - शरीर में वास करने वाला; अपि - यद्यपि; कौन्तेय - हे कुन्तीपुत्र; न करोति - कुछ नहीं करता; न लिप्यते - न ही लिप्त होता है |


भावार्थ




शाश्र्वत दृष्टिसम्पन्न लोग यह देख सकते हैं कि अविनाशी आत्मा दिव्य, शाश्र्वत तथा गुणों अतीत है | हे अर्जुन! भौतिक शरीर के साथ सम्पर्क होते हुए भी आत्मा न तो कुछ करता है और न लिप्त होता है |


तात्पर्य





ऐसा प्रतीत होता है कि जीव उत्पन्न होता है, क्योंकि भौतिक शरीर का जन्म होता है | लेकिन वास्तव में जीव शाश्र्वत है, वह उत्पन्न नहीं होता और शरीर में स्थित रह कर भी, वह दिव्य तथा शाश्र्वत रहता है | इस प्रकार वह विनष्ट नहीं किया जा सकता | वह स्वभाव से आनन्दमय है | वह किसी भौतिक कार्य में प्रवृत्त नहीं होता | अतएव भौतिक शरीरों के साथ संपर्क होने से जो कार्य सम्पन्न होते हैं, वे उसे लिप्त नहीं कर पाते |




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