अध्याय 10 श्लोक 11
मैं उन पर विशेष कृपा करने के हेतु उनके हृदयों में वास करते हुए ज्ञान के प्रकाशमान दीपक के द्वारा अज्ञानजन्य अंधकार को दूर करता हूँ |
अध्याय 10 : श्रीभगवान् का ऐश्वर्य
श्लोक 10 . 11
तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः |
नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता || ११ ||
तेषाम् – उन पर; एव – निश्चय ही; अनुकम्पा-अर्थम् – विशेष कृपा करने के लिए; अहम् – मैं; अज्ञान-जम् – अज्ञान के कारण; तमः – अंधकार; नाशयामि – दूर करता हूँ; आत्म-भाव – उनके हृदयों में; स्थः – स्थित; ज्ञान – ज्ञान के; दीपेन – दीपक द्वारा; भास्वता – प्रकाशमान हुए |
भावार्थ
मैं उन पर विशेष कृपा करने के हेतु उनके हृदयों में वास करते हुए ज्ञान के प्रकाशमान दीपक के द्वारा अज्ञानजन्य अंधकार को दूर करता हूँ |
भावार्थ
मैं उन पर विशेष कृपा करने के हेतु उनके हृदयों में वास करते हुए ज्ञान के प्रकाशमान दीपक के द्वारा अज्ञानजन्य अंधकार को दूर करता हूँ |
तात्पर्य
जब भगवान् चैतन्य बनारस में हरे कृष्ण के कीर्तन का प्रवर्तन कर रहे थे, तो हजारों लोग उनका अनुसरण कर रहे थे | तकालीन बनारस के अत्यन्त प्रभावशाली एवं विद्वान प्रकाशानन्द सरस्वती उनको भावुक कहकर उनका उपहास करते थे | कभी-कभी भक्तों की आलोचना दार्शनिक यह सोचकर करते हैं कि भक्तगण अंधकार में हैं और दार्शनिक दृष्टि से भोले-भोले भावुक हैं, किन्तु यह तथ्य नहीं है | ऐसे अनेक बड़े-बड़े विद्वान पुरुष हैं, जिन्होंने भक्ति का दर्शन प्रस्तुत किया है | किन्तु यदि कोई भक्त उनके इस साहित्य का या अपने गुरु का लाभ न भी उठाये और यदि वह अपनी भक्ति में एकनिष्ठ रहे, तो उसके अन्तर से कृष्ण स्वयं उसकी सहायता करते हैं | अतः कृष्णभावनामृत में रत एकनिष्ठ भक्त ज्ञानरहित नहीं हो सकता | इसके लिए इतनी ही योग्यता चाहिए कि वह पूर्ण कृष्णभावनामृत में रहकर भक्ति सम्पन्न करता रहे |
.
आधुनिक दार्शनिकों का विचार है कि बिना विवेक के शुद्ध ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता | उनके लिए भगवान् का उत्तर है – जो लोग शुद्धभक्ति में रत हैं, भले ही वे पर्याप्त शिक्षित न हों तथा वैदिक नियमों से पूर्णतया अवगत न हो, किन्तु भगवान् उनकी सहायता करते ही हैं, जैसा कि इस श्लोक में बताया गया है |
.
भगवान् अर्जुन को बताते हैं कि मात्र चिन्तन से परम सत्य भगवान् को समझ पाना असम्भव है, क्योंकि भगवान् इतने महान हैं कि कोरे मानसिक प्रयास से उन्हें न तो जाना जा सकता है, न ही प्राप्त किया जा सकता | भले ही कोई लाखों वर्षों तक चिन्तन करता रहे, किन्तु यदि भक्ति नहीं करता, यदि वह परम सत्य का प्रेमी नहीं है, तो उसे कभी भी कृष्ण या परं सत्य समझ में नहीं आएँगे | परं सत्य, कृष्ण, केवल भक्ति से प्रसन्न होते हैं और अपनी अचिन्त्य शक्ति से वे शुद्ध भक्त के हृदय में स्वयं प्रकट हो सकते हैं | शुद्धभक्त के हृदय में तो कृष्ण निरन्तर रहते हैं और कृष्ण की उपस्थिति सूर्य के समान है, जिसके द्वारा अज्ञान का अंधकार तुरन्त दूर हो जाता है | शुद्धभक्त पर भगवान् की यही विशेष कृपा है |
.
करोड़ो जन्मों के भौतिक संसर्ग के कल्मष के कारण मनुष्य का हृदय भौतिकता के मल (धूलि) से आच्छादित हो जाता है, किन्तु जब मनुष्य भक्ति में लगता है और निरन्तर हरे कृष्ण का जप करता है तो यह मॉल तुरन्त दूर हो जाता है और उसे शुद्ध ज्ञान प्राप्त होता है | परं लक्ष्य विष्णु को इसी जप तथा भक्ति से प्राप्त किया जा सकता है, अन्य किसी प्रकार के मनोधर्म या तर्क द्वारा नहीं | शुद्ध भक्त जीवन की भौतिक आवश्यकताओं के लिए चिन्ता नहीं करता है, न तो उसे कोई और चिन्ता करने की आवश्यकता है, क्योंकि हृदय से अंधकार हट जाने पर भक्त की प्रेमाभक्ति से प्रसन्न होकर भगवान् स्वतः सब कुछ प्रदान करते हैं | यही भगवद्गीता का उपदेश-सार है | भगवद्गीता के अध्ययन से मनुष्य भगवान् के शरणागत होकर शुद्धभक्ति में लग जाता है | जैसे ही भगवान् अपने ऊपर भार ले लेते हैं, मनुष्य सारे भौतिक प्रयासों से मुक्त हो जाता है |
<< © सर्वाधिकार सुरक्षित , भक्तिवेदांत बुक ट्रस्ट >>
Note : All material used here belongs only and only to BBT .
For Spreading The Message Of Bhagavad Gita As It Is
By Srila Prabhupada in Hindi ,This is an attempt to make it available online ,
if BBT have any objection it will be removed .
No comments:
Post a Comment
Hare Krishna !!