अध्याय 8 श्लोक 5
और जीवन के अन्त में जो केवल मेरा स्मरण करते हुए शरीर का त्याग करता है, वह तुरन्त मेरे स्वभाव को प्राप्त करता है | इसमें रंचमात्र भी सन्देह नहीं है |
अध्याय 8 : भगवत्प्राप्ति
श्लोक 8 . 5
अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् |
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः || ५ ||
अन्त-काले – मृत्यु के समय; च – भी; माम् – मुझको; एव – निश्चय ही; स्मरन् – स्मरण करते हुए; मुक्त्वा – त्याग कर; कलेवरम् – शरीर को; यः – जो; प्रयाति – जाता है; सः – वह; मत्-भावम् – मेरे स्वभाव को; याति – प्राप्त करता है; न – नहीं; अस्ति – है; अत्र – यहाँ; संशयः – सन्देह |
भावार्थ
भावार्थ
और जीवन के अन्त में जो केवल मेरा स्मरण करते हुए शरीर का त्याग करता है, वह तुरन्त मेरे स्वभाव को प्राप्त करता है | इसमें रंचमात्र भी सन्देह नहीं है |
तात्पर्य
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