अध्याय 17 श्लोक 11
यज्ञों में वही यज्ञ सात्त्विक होता है,जो शास्त्र के निर्देशानुसार कर्तव्य समझ कर उन लोगों के द्वारा किया जाता है, जो फल की इच्छा नहीं करते ।
अध्याय 17 : श्रद्धा के विभाग
श्लोक 17.11
अफलाकाङ्क्षिभिर्यज्ञो विधिदृष्टो य इज्यते |यष्टव्यमेवेति मनः समाधाय स सात्विकः || ११ ||
अफल-आकाङ्क्षिभिः - फल की इच्छा से रहित; यज्ञः - यज्ञ; विधि-दिष्टः - शास्त्रों के निर्देशानुसार; यः - जो; इज्यते - सम्पन्न किया जाता है; यष्टव्यम् - सम्पन्न किया जाना चाहिए; एव - निश्चय ही; इति - इस प्रकार; मनः - मन में; समाधाय - स्थिर करके; सः - वह; सत्त्विकः - सतोगुणी ।
भावार्थ
यज्ञों में वही यज्ञ सात्त्विक होता है,जो शास्त्र के निर्देशानुसार कर्तव्य समझ कर उन लोगों के द्वारा किया जाता है, जो फल की इच्छा नहीं करते ।
भावार्थ
यज्ञों में वही यज्ञ सात्त्विक होता है,जो शास्त्र के निर्देशानुसार कर्तव्य समझ कर उन लोगों के द्वारा किया जाता है, जो फल की इच्छा नहीं करते ।
तात्पर्य
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