अध्याय 17 श्लोक 8 - 10
जो भोजन सात्त्विक व्यक्तियों को प्रिय होता है, वह आयु बढ़ाने वाला, जीवन को शुद्ध करने वाला तथा बल, स्वास्थ्य, सुख तथा तृप्ति प्रदान करने वाला होता है ।ऐसा भोजन रसमय, स्निग्ध, स्वास्थ्य प्रद तथा हृदय को भाने वाला होता है ।
अत्यधिक तिक्त, खट्टे, नमकीन, गरम, चटपटे,शुष्क तथा जलन उत्पन्न करने वाले भोजन रजो गुणी व्यक्तियों को प्रिय होते हैं । ऐसे भोजन दुख, शोक तथा रोग उत्पन्न करने वाले हैं ।
खाने से तीन घंटे पूर्व पकाया गया, स्वाद हीन, वियोजित एवं सड़ा, जूठा तथा अस्पृश्य वस्तुओं से युक्त भोजन उन लोगों को प्रिय होता है,जो तामसी होते हैं ।
अध्याय 17 : श्रद्धा के विभाग
श्लोक 17.8 - 10
आयु:सत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः |
आयु:सत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः |
रस्या स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः || ८ ||
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कट्वम्ललवणात्युष्णतीक्ष्णरुक्षविदाहिनः |
आहारा राजसस्येष्टा दु:खशोकामयप्रदाः || ९ ||
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यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत् |
उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम् || १० ||
आयुः - जीवन काल; सत्त्व - अस्तित्व; बल - बल; आरोग्य - स्वास्थ्य; सुख - सुख; प्रीति - तथा संतोष; विवर्धनाः - बढ़ाते हुए; रस्याः - रस से युक्त; स्निग्धाः - चिकना; स्थिराः - सहिष्णु; हृद्याः - हृदय को भाने वाले; आहाराः - भोजन; सात्त्विक - सतोगुणी; प्रियाः - अच्छे लगने वाले |
कटु - कडुवे, तीते; अम्ल - खट्टे; लवण - नमकीन; अति-उष्ण - अत्यन्त गरम; तीक्ष्ण - चटपटे; रुक्ष - शुष्क; विदाहिनः - जलाने वाले; आहाराः - भोजन; राजसस्य - रजो गुणी के; इष्टाः - रुचिकर; दुःख - दुख; शोक - शोक; आमय - रोग; प्रदाः - उत्पन्न करने वाले |
यात-यामम् - भोजन करने से तीन घंटे पूर्व पकाया गया; गत-रसम् - स्वादरहित; पूति - दुर्गंधयुक्त; पर्युषितम् - बिगड़ा हुआ; च - भी; यत् - जो; उच्छिष्टम् - अन्यों का जूठन; अपि - भी; च - तथा; अमेध्यम् - अस्पृश्य; भोजनम् - भोजन; तामस - तमोगुणी को; प्रियम् - प्रिय |
कटु - कडुवे, तीते; अम्ल - खट्टे; लवण - नमकीन; अति-उष्ण - अत्यन्त गरम; तीक्ष्ण - चटपटे; रुक्ष - शुष्क; विदाहिनः - जलाने वाले; आहाराः - भोजन; राजसस्य - रजो गुणी के; इष्टाः - रुचिकर; दुःख - दुख; शोक - शोक; आमय - रोग; प्रदाः - उत्पन्न करने वाले |
यात-यामम् - भोजन करने से तीन घंटे पूर्व पकाया गया; गत-रसम् - स्वादरहित; पूति - दुर्गंधयुक्त; पर्युषितम् - बिगड़ा हुआ; च - भी; यत् - जो; उच्छिष्टम् - अन्यों का जूठन; अपि - भी; च - तथा; अमेध्यम् - अस्पृश्य; भोजनम् - भोजन; तामस - तमोगुणी को; प्रियम् - प्रिय |
भावार्थ
जो भोजन सात्त्विक व्यक्तियों को प्रिय होता है, वह आयु बढ़ाने वाला, जीवन को शुद्ध करने वाला तथा बल, स्वास्थ्य, सुख तथा तृप्ति प्रदान करने वाला होता है ।ऐसा भोजन रसमय, स्निग्ध, स्वास्थ्य प्रद तथा हृदय को भाने वाला होता है ।
अत्यधिक तिक्त, खट्टे, नमकीन, गरम, चटपटे,शुष्क तथा जलन उत्पन्न करने वाले भोजन रजो गुणी व्यक्तियों को प्रिय होते हैं । ऐसे भोजन दुख, शोक तथा रोग उत्पन्न करने वाले हैं ।
खाने से तीन घंटे पूर्व पकाया गया, स्वाद हीन, वियोजित एवं सड़ा, जूठा तथा अस्पृश्य वस्तुओं से युक्त भोजन उन लोगों को प्रिय होता है,जो तामसी होते हैं ।
भावार्थ
जो भोजन सात्त्विक व्यक्तियों को प्रिय होता है, वह आयु बढ़ाने वाला, जीवन को शुद्ध करने वाला तथा बल, स्वास्थ्य, सुख तथा तृप्ति प्रदान करने वाला होता है ।ऐसा भोजन रसमय, स्निग्ध, स्वास्थ्य प्रद तथा हृदय को भाने वाला होता है ।
अत्यधिक तिक्त, खट्टे, नमकीन, गरम, चटपटे,शुष्क तथा जलन उत्पन्न करने वाले भोजन रजो गुणी व्यक्तियों को प्रिय होते हैं । ऐसे भोजन दुख, शोक तथा रोग उत्पन्न करने वाले हैं ।
खाने से तीन घंटे पूर्व पकाया गया, स्वाद हीन, वियोजित एवं सड़ा, जूठा तथा अस्पृश्य वस्तुओं से युक्त भोजन उन लोगों को प्रिय होता है,जो तामसी होते हैं ।
तात्पर्य
जो राजस भोजन कटु, बहुत लवणीय या अत्यधिक गर्म, चरपरा होता है, वह आमाशय की श्लेष्मा को घटा कर रोग उत्पन्न करता है । तामसी भोजन अनिर्वायतः वासी होता है ।खाने के तीन घंटे पूर्व बना कोई भी भोजन ( भगवान् को अर्पित प्रसादम् को छोड़कर) तामसी माना जाता है । बिगड़ने के कारण उससे दुर्गंध आती है, जिससे तामसी लोग प्रायः आकृष्ट होते हैं, किन्तु सात्त्विक पुरुष उससे मुख मोड़ लेते हैं ।
उच्छिष्ट (जूठा) भोजन उसी अवस्था में किया जा सकता है, जब वह उस भोजन का एक अंश हो जो भगवान् को अर्पित किया जा चुका हो, या कोई साधुपुरुष, विशेष रूप से गुरु द्वारा,ग्रहण किया जा चुका हो । अन्यथा ऐसा झूठ भोजन तामसी होता है और वह संदूषण या रोग को बढ़ाने वाला होता है । यद्यपि ऐसा भोजन तामसी लोगों को स्वादिष्ट लगता है, लेकिन सतोगुणी उसे न तो छूना पसन्द करते हैं, न खाना । सर्वोत्तम भोजन तो भगवान् को समर्पित भोजन का उच्छिष्ट है । भगवद्गीता में परमेश्र्वर कहते है कि तरकारियाँ, आटे या दूध की बनी वस्तुएँ भक्ति पूर्वक भेंट किये जाने पर स्वीकार करते हैं । पत्रं पुष्पं फलं तोयम् । निस्सन्देह भक्ति तथा प्रेम ही प्रमुख वस्तुएँ हैं, जिन्हें भगवान् स्वीकार करते हैं । लेकिन इसका भी उल्लेख है कि प्रसादम् को एक विशेष विधि से बनाया जाय । कोई भी भोजन, जो शास्त्रीय ढंग से तैयार किया जाता है और भगवान् को अर्पित किया जाता है, ग्रहण किया जा सकता है, भले ही वह कितने ही घंटे पूर्व तैयार हुआ हो, क्योंकि ऐसा भोजन दिव्य होता है । अतएव भोजन को रोगाणु धारक, खाद्य तथा सभी मनुष्यों के लिए रुचिकर बनाने के लिए सर्व प्रथम भगवान् को अर्पित करना चाहिए ।
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Hare Krishna !!