अध्याय 17 श्लोक 5 - 6
जो लोग दम्भ तथा अहंकार से अभिभूत होकर शास्त्र विरुद्ध कठोर तपस्या और व्रत करते हैं, जो काम तथा आसक्ति द्वारा प्रेरित होते हैं जो मूर्ख हैं तथा शरीर के भौतिक तत्त्वों को तथा शरीर के भीतर स्थित परमात्मा को कष्ट पहुँचाते हैं, वे असुर कहे जाते हैं ।
अध्याय 17 : श्रद्धा के विभाग
श्लोक 17.5 - 6
अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जनाः |
अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जनाः |
दम्भाहङ्कारसंयुक्ताः कामरागबलान्विताः || ५ ||
कर्षयन्तः शरीरस्थं भूतग्राममचेतसः |
मां चैवान्तः शरीरस्थं तान्विद्ध्यासुरनिश्र्चयान् || ६ ||
अ-शास्त्र - जो शास्त्रों में नहीं है; विहितम् - निर्देशित; घोरम् - अन्यों के लिए हानिप्रद; तप्यन्ते - तप करते हैं; ये - जो लोग; तपः - तपस्या; जनाः - लोग; दम्भ - घमण्ड; अहङ्कार - तथा अहंकार से; संयुक्ताः - प्रवृत्त; काम - काम; राग - तथा आसक्ति का; बल - बलपूर्वक; आन्विताः - प्रेरित; कर्षयन्तः - कष्ट देते हुए; शरीर-स्थम् - शरीर के भीतर स्थित; भूत-ग्रामम् - भौतिक तत्त्वों का संयोग; अचेतसः - भ्रमित मनोवृत्ति वाले; माम् -मुझको; च - भी; एव - निश्चय ही; अन्तः - भीतर; शरीर-स्थम् - शरीर में स्थित; तान् - उनको; विद्धि - जानो; आसुर-विश्र्चयान् - आसुर ।
भावार्थ
जो लोग दम्भ तथा अहंकार से अभिभूत होकर शास्त्र विरुद्ध कठोर तपस्या और व्रत करते हैं, जो काम तथा आसक्ति द्वारा प्रेरित होते हैं जो मूर्ख हैं तथा शरीर के भौतिक तत्त्वों को तथा शरीर के भीतर स्थित परमात्मा को कष्ट पहुँचाते हैं, वे असुर कहे जाते हैं ।
भावार्थ
जो लोग दम्भ तथा अहंकार से अभिभूत होकर शास्त्र विरुद्ध कठोर तपस्या और व्रत करते हैं, जो काम तथा आसक्ति द्वारा प्रेरित होते हैं जो मूर्ख हैं तथा शरीर के भौतिक तत्त्वों को तथा शरीर के भीतर स्थित परमात्मा को कष्ट पहुँचाते हैं, वे असुर कहे जाते हैं ।
तात्पर्य
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