अध्याय 17 श्लोक 14
परमेश्र्वर, ब्राह्मणों, गुरु, माता-पिता जैसे गुरुजनों की पूजा करना तथा पवित्रता, सरलता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा ही शारीरिक तपस्या है |
अध्याय 17 : श्रद्धा के विभाग
श्लोक 17.14
ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते || १४ ||
देव - परमेश्र्वर; द्विज - ब्राह्मण; गुरु - गुरु; प्राज्ञ - तथा पूज्य व्यक्तियों की; पूजनम् - पूजा; शौचम् - पवित्रता; आर्जवम् - सरलता; ब्रह्मचर्यम् - ब्रह्मचर्य; अहिंसा - अहिंसा; च - भी; शारीरम् - शरीर सम्बन्धी; तपः - तपस्या; उच्यते - कहा जाता है |
भावार्थ
परमेश्र्वर, ब्राह्मणों, गुरु, माता-पिता जैसे गुरुजनों की पूजा करना तथा पवित्रता, सरलता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा ही शारीरिक तपस्या है |
भावार्थ
परमेश्र्वर, ब्राह्मणों, गुरु, माता-पिता जैसे गुरुजनों की पूजा करना तथा पवित्रता, सरलता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा ही शारीरिक तपस्या है |
तात्पर्य
<< © सर्वाधिकार सुरक्षित , भक्तिवेदांत बुक ट्रस्ट >>
Note : All material used here belongs only and only to BBT .
For Spreading The Message Of Bhagavad Gita As It Is
By Srila Prabhupada in Hindi ,This is an attempt to make it available online ,
if BBT have any objection it will be removed .
No comments:
Post a Comment
Hare Krishna !!