अध्याय 14 श्लोक 13
अध्याय 14 : प्रकृति के तीन गुण
श्लोक 14.13
अप्रकाशोSप्रवृत्तिश्र्च प्रमादो मोह एव च |
तमस्येतानि जायन्ते विवृद्धे कुरुनन्दन || १३ ||
अप्रकाशोSप्रवृत्तिश्र्च प्रमादो मोह एव च |
तमस्येतानि जायन्ते विवृद्धे कुरुनन्दन || १३ ||
अप्रकाशः - अँधेरा; अप्रवृत्तिः - निष्क्रियता; च - तथा; प्रमादः - पागलपन; मोहः - मोह; एव - निश्चय ही; च - भी; तमसि - तमोगुण; एतानि - ये; जायन्ते - प्रकट होते हैं; विवृद्धे - बढ़ जाने पर; कुरु-नन्दन - हे कुरुपुत्र |
भावार्थ
भावार्थ
जब तमोगुण में वृद्धि हो जाती है, तो हे कुरुपुत्र! अँधेरा, जड़ता, प्रमत्तता तथा मोह का प्राकट्य होता है |
तात्पर्य
जहाँ प्रकाश नहीं होता, वहाँ ज्ञान अनुपस्थित रहता है | तमोगुणी व्यक्ति किसी नियम में बँधकर कार्य नहीं करता | वह अकारण ही अपनी सनक के अनुसार कार्य करना चाहता है | यद्यपि उसमें कार्य करने की क्षमता होती है, किन्तु वह परिश्रम नहीं करता | यह मोह कहलाता है | यद्यपि चेतना रहती है, लेकिन जीवन निष्क्रिय रहता है | ये तमोगुण के लक्षण हैं |
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