अध्याय 10 श्लोक 39
यही नहीं, हे अर्जुन! मैं समस्त सृष्टि का जनक बीज हूँ | ऐसा चार तथा अचर कोई भी प्राणी नहीं है, जो मेरे बिना रह सके |
अध्याय 10 : श्रीभगवान् का ऐश्वर्य
श्लोक 10 . 39
यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन |
न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम् || ३९ ||
यत् – जो; च – भी; अपि – हो सकता है; सर्व-भूतानाम् – समस्त सृष्टियों में; बीजम् – बीज; तत् – वह; अहम् – मैं हूँ; अर्जुन – हे अर्जुन; न – नहीं; तत् – वह; अस्ति – है; विना – रहित; यत् – जो; स्यात् – हो; मया – मुझसे; भूतम् – जीव; चर-अचरम् – जंगम तथा जड़ |
भावार्थ
यही नहीं, हे अर्जुन! मैं समस्त सृष्टि का जनक बीज हूँ | ऐसा चार तथा अचर कोई भी प्राणी नहीं है, जो मेरे बिना रह सके |
भावार्थ
यही नहीं, हे अर्जुन! मैं समस्त सृष्टि का जनक बीज हूँ | ऐसा चार तथा अचर कोई भी प्राणी नहीं है, जो मेरे बिना रह सके |
तात्पर्य
प्रत्येक वस्तु का कारण होता है और इस सृष्टि का कारण या बीज कृष्ण हैं | कृष्ण की शक्ति के बिना कुछ भी नहीं रह सकता, अतः उन्हें सर्वशक्तिमान कहा जाता है | उनकी शक्ति के बिना चार तथा अचर, किसी भी जीव का अस्तित्व नहीं रह सकता | जो कुछ कृष्ण की शक्ति पर आधारित नहीं है, वह माया है अर्थात् “वह जो नहीं है |”
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