अध्याय 10 श्लोक 33
अक्षरों में मैं अकार हूँ और समासों में द्वन्द्व समास हूँ | मैं शाश्र्वत काल भी हूँ और स्त्रष्टाओं में ब्रह्मा हूँ |
अध्याय 10 : श्रीभगवान् का ऐश्वर्य
श्लोक 10 . 33
अक्षराणामकारोSस्मि द्वन्द्वः सामासिकस्य च |
अहमेवाक्षयः कालो धाताहं विश्र्वतोमुखः || ३३ ||
अक्षराणाम् – अक्षरों में; अ-कारः – अकार अर्थात् पहला अक्षर; अस्मि – हूँ; द्वन्द्वः – द्वन्द्व समास; सामासिकस्य – सामसिक शब्दों में; च – तथा; अहम् – मैं हूँ; एव – निश्चय ही; अक्षयः – शाश्र्वत; कालः – काल, समय; धाता – स्त्रष्टा; अहम् – मैं; विश्र्वतः-मुखः – ब्रह्मा |
भावार्थ
अक्षरों में मैं अकार हूँ और समासों में द्वन्द्व समास हूँ | मैं शाश्र्वत काल भी हूँ और स्त्रष्टाओं में ब्रह्मा हूँ |
भावार्थ
तात्पर्य
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समस्त मारने वालों में काल सर्वोपरि है, क्योंकि वह सबों को मारता है | काल कृष्णस्वरूप है, क्योंकि समय आने पर प्रलयाग्नि से सब कुछ लय हो जाएगा |
सृजन करने काले जीवों में ब्रह्मा प्रधान हैं, अतः वे भगवान् कृष्ण के प्रतिक हैं |
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