अध्याय 6 श्लोक 29
अध्याय 6 : ध्यानयोग
श्लोक 6 . 29
सर्वभूतस्थमात्मनं सर्वभूतानि चात्मनि |
ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः || २९ ||
सर्व-भूत-स्थम् – सभी जीवों में
स्थित; आत्मानम् – परमात्मा को;
सर्व – सभी; भूतानि –
जीवों को; च – भी;
आत्मनि – आत्मा में; ईक्षते
– देखता है; योग-युक्त-आत्मा – कृष्णचेतना में लगा व्यक्ति; सर्वत्र – सभी जगह; सैम-दर्शनः – समभाव
से देखने वाला |
भावार्थ
वास्तविक योगी समस्त जीवों में मुझको तथा मुझमें समस्त जीवों को देखता है | निस्सन्देह स्वरूपसिद्ध व्यक्ति मुझ परमेश्र्वर को सर्वत्र देखता है |
तात्पर्य
बाह्य रूप से भी प्रत्येक जीव भगवान् की शक्ति (भगवद्शक्ति) में स्थित है | जैसा कि सातवें अध्याय में बताया जाएगा, भगवान् की दो मुख्य शक्तियाँ हैं – परा तथा अपरा | जीव पराशक्ति का अंश होते हुए भी अपराशक्ति से बद्ध है | जीव सदा ही भगवान् की शक्ति में स्थित है | प्रत्येक जीव किसी न किसी प्रकार भगवान् में ही स्थित रहता है | योगी समदर्शी है क्योंकि वह देखता है कि सारे जीव अपने-अपने कर्मफल के अनुसार विभिन्न स्थितियों में रहकर भगवान् के दास होते हैं | इस प्रकार प्रत्येक अवस्था में जीव ईश्र्वर का दास है | कृष्णभावनाभावित व्यक्ति में यह समदृष्टि पूर्ण होती है |
<< © सर्वाधिकार सुरक्षित , भक्तिवेदांत बुक ट्रस्ट >>
Note : All material used here belongs only and only to BBT .
For Spreading The Message Of Bhagavad Gita As It Is
By Srila Prabhupada in Hindi ,This is an attempt to make it available online ,
if BBT have any objection it will be removed .
No comments:
Post a Comment
Hare Krishna !!