अध्याय 2 श्लोक 68
अतः हे महाबाहु! जिस पुरुष की इन्द्रियाँ अपने-अपने विषयों से सब प्रकार से विरत होकर उसके वश में हैं, उसी की बुद्धि निस्सन्देह स्थिर है |
अध्याय 2 : गीता का सार
श्लोक 2 . 68
तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः |
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || ६८ ||
तस्मात् – अतः; यस्य – जिसकी; महा-बाहो – हे
महाबाहु; निगृहीतानि – इस तरह वशिभूत; सर्वशः – सब प्रकार से; इन्द्रियाणि –
इन्द्रियों; इन्द्रिय-अर्थेभ्यः – इन्द्रियविषयों से; तस्य – उसकी; प्रज्ञ
– बुद्धि; प्रतिष्ठिता – स्थिर |
भावार्थ
अतः हे
महाबाहु! जिस पुरुष की इन्द्रियाँ अपने-अपने विषयों से सब प्रकार से विरत
होकर उसके वश में हैं, उसी की बुद्धि निस्सन्देह स्थिर है |
तात्पर्य
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