अध्याय 2 श्लोक 36
तुम्हारे शत्रु अनेक प्रकार के कटु शब्दों से तुम्हारा वर्णन करेंगे और तुम्हारी सामर्थ्य का उपहास करेंगे | तुम्हारे लिए इससे दुखदायी और क्या हो सकता है ?
अध्याय 2 : गीता का सार
श्लोक 2 . 36
अवाच्यवादांश्र्च बहून्वदिष्यन्ति तवाहिताः |
निन्दन्तस्तव सामर्थ्यं ततो दुःखतरं नु किम् || ३६ ||
अवाच्य – कटु; वादान् – मिथ्या शब्द; च – भी; बहून् – अनेक; वदिष्यन्ति – कहेंगे; तव – तुम्हारे; अहिताः – शत्रु; निन्दन्तः – निन्दा करते हुए; तव – तुम्हारी; सामर्थ्यम् – सामर्थ्य को; ततः – अपेक्षा; दुःख-तरम् – अधिक दुखदायी; नु – निस्सन्देह; किम् – और क्या है?
भावार्थ
तुम्हारे शत्रु
अनेक प्रकार के कटु शब्दों से तुम्हारा वर्णन करेंगे और तुम्हारी सामर्थ्य
का उपहास करेंगे | तुम्हारे लिए इससे दुखदायी और क्या हो सकता है?
तात्पर्य
प्रारम्भ में
ही भगवान् कृष्ण को अर्जुन के अयाचित दयाभाव पर आश्चर्य हुआ था और उन्होंने
इस दयाभाव को अनार्योचित बताया था | अब उन्होंने विस्तार से अर्जुन के
तथाकथित दयाभाव के विरुद्ध कहे गये अपने वचनों को सिद्ध कर दिया है |
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
11 12 13 14 15 16 17 18 19 20
21 22 23 24 25 26 27 28 29 30
31 32 33 34 35 36 37 38 39 40
41 42 43 44 45 46 47 48 49 50
11 12 13 14 15 16 17 18 19 20
21 22 23 24 25 26 27 28 29 30
31 32 33 34 35 36 37 38 39 40
41 42 43 44 45 46 47 48 49 50
<< © सर्वाधिकार सुरक्षित , भक्तिवेदांत बुक ट्रस्ट >>
Note : All material used here belongs only and only to BBT .
For Spreading The Message Of Bhagavad Gita As It Is
By Srila Prabhupada in Hindi ,This is an attempt to make it available online ,
if BBT have any objection it will be removed .
No comments:
Post a Comment
Hare Krishna !!