अध्याय 2 श्लोक 25
यह आत्मा अव्यक्त, अकल्पनीय तथा अपरिवर्तनीय कहा जाता है | यह जानकार तुम्हें शरीर के लिए शोक नहीं करना चाहिए |
अध्याय 2 : गीता का सार
श्लोक 2 . 25
अव्यक्तोSयमचिन्त्योSयमविकार्योSयमुच्यते |
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि || २५ ||
अव्यक्तः – अदृश्य; अयम् – यह आत्मा; अचिन्त्यः – अकल्पनीय; अयम् – यह आत्मा; अविकार्यः – अपरिवर्तित; अयम् – यह आत्मा; उच्यते – कहलाता है; तस्मात् – अतः; एवम् – इस प्रकार; विदित्वा – अच्छी तरह जानकर; एनम् – इस आत्मा के विषयमें; न – नहीं; अनुशोचितुम् – शोक करने के लिए; अर्हसि – योग्य हो |
भावार्थ
यह आत्मा अव्यक्त, अकल्पनीय तथा अपरिवर्तनीय कहा जाता है | यह जानकार तुम्हें शरीर के लिए शोक नहीं करना चाहिए |
तात्पर्य
जैसा कि पहले
कहा जा चुका है, आत्मा इतना सूक्ष्म है कि इसे सर्वाधिक शक्तिशाली
सूक्ष्मदर्शी यंत्र से भी नहीं देखा जा सकता, अतः यह अदृश्य है | जहाँ तक
आत्मा के अस्तित्व का सम्बन्ध है, श्रुति के प्रमाण के अतिरिक्त अन्य किसी
प्रयोग द्वारा इसके अस्तित्व को सिद्ध नहीं किया जा सकता | हमें इस सत्य को
स्वीकार करना पड़ता है क्योंकि अनुभवगम्य सत्य होते हुए भी आत्मा के
अस्तित्व को समझने के लिए कोई अन्य साधन नहीं है | हमें अनेक बातें केवल
उच्च प्रमाणों के आधार पर माननी पड़ती है | कोई भी अपनी माता के आधार पर
अपने पिता के अस्तित्व को अस्वीकार नहीं कर सकता | पिता के स्वरूप को जानने
का साधन या एकमात्र प्रमाण माता है | इसी प्रकार वेदाध्ययन के अतिरिक्त
आत्मा को समझने का अन्य उपाय नहीं है | दूसरे शब्दों में, आत्मा मानवीय
व्यावहारिक ज्ञान द्वारा अकल्पनीय है | आत्मा चेतना है और चेतन है – वेदों
के इस कथन को हमें स्वीकार करना होगा | आत्मा में शरीर जैसे परिवर्तन नहीं
होते | मूलतः अविकारी रहते हुए आत्मा अनन्त परमात्मा की तुलने में अणु-रूप
है | परमात्मा अनन्त है और अणु-आत्मा अति सूक्ष्म है | अतः अति सूक्ष्म
आत्मा अविकारी होने के कारण अनन्त आत्मा भगवान् के तुल्य नहीं हो सकता |
यही भाव वेदों में भिन्न-भिन्न प्रकार से आत्मा के स्थायित्व की पुष्टि
करने के लिए दुहराया गया है | किसी बात का दुहराना उस तथ्य को बिना किसी
त्रुटि के समझने के लिए आवश्यक है |
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
11 12 13 14 15 16 17 18 19 20
21 22 23 24 25 26 27 28 29 30
31 32 33 34 35 36 37 38 39 40
41 42 43 44 45 46 47 48 49 50
11 12 13 14 15 16 17 18 19 20
21 22 23 24 25 26 27 28 29 30
31 32 33 34 35 36 37 38 39 40
41 42 43 44 45 46 47 48 49 50
<< © सर्वाधिकार सुरक्षित , भक्तिवेदांत बुक ट्रस्ट >>
Note : All material used here belongs only and only to BBT .
For Spreading The Message Of Bhagavad Gita As It Is
By Srila Prabhupada in Hindi ,This is an attempt to make it available online ,
if BBT have any objection it will be removed .
No comments:
Post a Comment
Hare Krishna !!