अध्याय 1 श्लोक 45
यदि शस्त्रधारी धृतराष्ट्र के पुत्र मुझ निहत्थे तथा रणभूमि में प्रतिरोध न करने वाले को मारें, तो यह मेरे लिए श्रेयस्कर होगा ।
अध्याय 1: कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण
श्लोक 1 . 45
यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः |
धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत् || ४५ ||
यदि – यदि;
माम् – मुझको; अप्रतिकारम् – प्रतिरोध न करने के कारण; अशस्त्रम् – बिना
हथियार के; शस्त्र-पाणयः – शस्त्रधारी; धार्तराष्ट्राः – धृतराष्ट्र के
पुत्र; रणे – युद्धभूमि में; हन्युः – मारें; तत् – वह; मे – मेरे लिए;
क्षेम-तरम् – श्रेयस्कर; भवेत् – होगा |
भावार्थ
यदि शस्त्रधारी धृतराष्ट्र के पुत्र मुझ निहत्थे तथा रणभूमि में प्रतिरोध न करने वाले को मारें, तो यह मेरे लिए श्रेयस्कर होगा ।
तात्पर्य
क्षत्रियों के युद्ध-नियमों के अनुसार ऐसी प्रथा है कि निहत्थे तथा विमुख शत्रु पर आक्रमण न किया जाय | किन्तु अर्जुन ने निश्चय किया कि शत्रु भले ही इस विषम अवस्था में उस पर आक्रमण कर दें, किन्तु वह युद्ध नहीं करेगा | उसने इस पर विचार नहीं किया कि दूसरा दल युद्ध के लिए कितना उद्यत है | इस सब लक्षणों का कारण उसकी दयाद्रता है जो भगवान् के महान भक्त होने के कारण उत्पन्न हुई |
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