अध्याय 1 श्लोक 43
हे प्रजापालक कृष्ण! मैनें गुरु-परम्परा से सुना है कि जो लोग कुल-धर्म का विनाश करते हैं, वे सदैव नरक में वास करते हैं |
अध्याय 1: कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण
श्लोक 1 . 43
उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन |
नरके नियतं वासो भवतीत्यनुश्रुश्रुम || ४३ ||
उत्सन्न – विनष्ट; कुल-धर्माणाम् – पारिवारिक परम्परा वाले; मनुष्याणाम् – मनुष्यों का; जनार्दन – हे कृष्ण; नरके – नरक में; नियतम् – सदैव; वासः – निवास; भवति – होता है; इति – इस प्रकार; अनुशुश्रुम – गुरु-परम्परा से मैनें सुना है |
भावार्थ
हे प्रजापालक कृष्ण! मैनें गुरु-परम्परा से सुना है कि जो लोग कुल-धर्म का विनाश करते हैं, वे सदैव नरक में वास करते हैं |
तात्पर्य
अर्जुन अपने तर्कों को अपने निजी अनुभव पर न आधारित करके आचार्यों से जो सुन रखा है उस पर आधारित करता है | वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने की यही विधि है | जिस व्यक्ति ने पहले से ज्ञान प्राप्त कर रखा है उस व्यक्ति की सहायता के बिना कोई भी वास्तविक ज्ञान तक नहीं पहुँच सकता | वर्णाश्रम-धर्म की एक पद्धति के अनुसार मृत्यु के पूर्व मनुष्य को पापकर्मों के लिए प्रायश्चित्त करना होता है | जो पापात्मा है उसे इस विधि का अवश्य उपयोग करना चाहिए | ऐसा किये बिना मनुष्य निश्चित रूप से नरक भेजा जायेगा जहाँ उसे अपने पापकर्मों के लिए कष्टमय जीवन बिताना होगा |
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