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Thursday 3 November 2016

अध्याय 12 श्लोक 12 - 5 , BG 12 - 5 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 12 श्लोक 5

जिन लोगों के मन परमेश्र्वर के अव्यक्त, निराकार स्वरूप के प्रति आसक्त हैं, उनके लिए प्रगति कर पाना अत्यन्त कष्टप्रद है | देहधारियों के लिए उस क्षेत्र में प्रगति कर पाना सदैव दुष्कर होता है |

अध्याय 12 श्लोक 12 - 3 , 4 , BG 12 - 3 , 4 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 12 श्लोक 3 , 4

लेकिन जो लोग अपनी इन्द्रियों को वश में करके तथा सबों के प्रति समभाव रखकर परम सत्य की निराकार कल्पना के अन्तर्गत उस अव्यक्त की पूरी तरह से पूजा करते हैं, जो इन्द्रियों की अनुभूति के परे है, सर्वव्यापी है, अकल्पनीय है, अपरिवर्तनीय है, अचल तथा ध्रुव है, वे समस्त लोगों के कल्याण में संलग्न रहकर अन्ततः मुझे प्राप्त करते है |

अध्याय 12 श्लोक 12 - 2 , BG 12 - 2 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 12 श्लोक 2

श्रीभगवान् ने कहा - जो लोग अपने मन को मेरे साकार रूप में एकाग्र करते हैं, और अत्यन्त श्रद्धापूर्वक मेरी पूजा करने में सदैव लगे रहते हैं, वे मेरे द्वारा परम सिद्ध माने जाते हैं |