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Saturday 4 June 2016

अध्याय 11 श्लोक 11 - 31 , BG 11 - 31 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 11 श्लोक 31

हे देवेश! कृपा करके मुझे बतलाइये कि इतने उग्ररूप में आप कौन हैं? मैं आपको नमस्कार करता हूँ, कृपा करके मुझ पर प्रसन्न हों | आप आदि-भगवान् हैं | मैं आपको जानना चाहता हूँ, क्योंकि मैं नहीं जान पा रहा हूँ कि आपका प्रयोजन क्या है |



अध्याय 11 : विराट रूप

श्लोक 11.31



आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो नमोSस्तु ते देववर प्रसीद |

       विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यं न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम् || ३१ ||



आख्याहि – कृपया बताएं; मे – मुझको; कः – कौन; भवान् – आप; उग्र-रूपः – भयानक रूप; नमः-अस्तु – नमस्कार को; ते – आपको; देव-वर – हे देवताओं में श्रेष्ठ; प्रसीद – प्रसन्न हों; विज्ञातुम् – जानने के लिए; इच्छामि – इच्छुक हूँ; भवन्तम् – आपको; आद्यम् – आदि; – नहीं; हि – निश्चय ही; प्रजानामि – जानता हूँ; तव – आपका; प्रवृत्तिम् – प्रयोजन |



भावार्थ


हे देवेश! कृपा करके मुझे बतलाइये कि इतने उग्ररूप में आप कौन हैं? मैं आपको नमस्कार करता हूँ, कृपा करके मुझ पर प्रसन्न हों | आप आदि-भगवान् हैं | मैं आपको जानना चाहता हूँ, क्योंकि मैं नहीं जान पा रहा हूँ कि आपका प्रयोजन क्या है |





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