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Tuesday 26 January 2016

अध्याय 11 श्लोक 11 - 10 , 11 , BG 11 - 10 , 11 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 11 श्लोक 10 - 11
अर्जुन ने इस विश्र्वरूप में असंख्य मुख, असंख्य नेत्र तथा असंख्य आश्चर्यमय दृश्य देखे | यह रूप अनेक दैवी आभुषणों से अलंकृत था और अनेक दैवी हथियार उठाये हुए था | यह दैवी मालाएँ तथा वस्त्र धारण किये थे और उस पर अनके दिव्य सुगन्धियाँ लगी थीं | सब कुछ आश्चर्यमय, तेजमय, असीम तथा सर्वत्र व्याप्त था |



अध्याय 11 : विराट रूप

श्लोक 11 . 10 - 11




अनेकवक्त्रनयनमनेकाअद्भुतदर्शनम् |

अनेकदिव्याभरणं दिव्यानेकोद्यतायुधम् || १० ||


दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम् |

सर्वाश्र्चर्यमयं देवमनन्तं विश्र्वतोमुखम् || ११ ||







अनेक – कई; वक्त्र – मुख; नवनम् – नेत्र; अनेक – अनेक; अद्भुत – विचित्र; दर्शनम् – दिशी; अनेक – अनेक; दिव्य – दिव्य,अलौकिक; आभरणम् – आभूषण; दिव्य – दैवी; अनेक – विविध; उद्यत – उठाये हुए; आयुधम् – हथियार; दिव्य – दिव्य; माल्य – मालाएँ; अम्बर – वस्त्र; धरम् – धारण किये; दिव्य – दिव्य; गन्ध – सुगन्धियाँ; अनुलेपनम् – लगी थीं; सर्व – समस्त; आश्र्चर्य-मयम् – आश्चर्यपूर्ण; देवम् – प्रकाशयुक्त; अनन्तम् – असीम; विश्र्वतः-मुखम् – सर्वव्यापी |




भावार्थ

अर्जुन ने इस विश्र्वरूप में असंख्य मुख, असंख्य नेत्र तथा असंख्य आश्चर्यमय दृश्य देखे | यह रूप अनेक दैवी आभुषणों से अलंकृत था और अनेक दैवी हथियार उठाये हुए था | यह दैवी मालाएँ तथा वस्त्र धारण किये थे और उस पर अनके दिव्य सुगन्धियाँ लगी थीं | सब कुछ आश्चर्यमय, तेजमय, असीम तथा सर्वत्र व्याप्त था |



तात्पर्य



इस दोनों श्लोकों में अनेक शब्द बारम्बार प्रयोग हुआ है, जो यह सूचित करता है की अर्जुन जिस रूप को देख रहा था उसके हाथों, मुखों, पाँवों कि कोई सीमा ण थी | ये रूप सारे ब्रह्माण्ड में फैले हुए थे, किन्तु भगवत्कृपा से अर्जुन उन्हें एक स्थान पर बैठे-बैठे देख रहा था | यह सब कृष्ण की अचिन्त्य शक्ति के कारण था |








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