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Saturday 31 October 2015

अध्याय 9 श्लोक 9 - 3 , BG 9 - 3 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 3
हे परन्तप! जो लोग भक्ति में श्रद्धा नहीं रखते, वे मुझे प्राप्त नहीं कर पाते | अतः वे इस भौतिक जगत् में जन्म-मृत्यु के मार्ग पर वापस आते रहते हैं |

अध्याय 9 श्लोक 9 - 2 , BG 9 - 2 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 2
श्रीभगवान् ने कहा – हे अर्जुन! चूँकि तुम मुझसे कभी ईर्ष्या नहीं करते, इसीलिए मैं तुम्हें यह परम गुह्यज्ञान तथा अनुभूति बतलाऊँगा, जिसे जानकर तुम संसार के सारे क्लेशों से मुक्त हो जाओगे |

अध्याय 9 श्लोक 9 - 1 , BG 9 - 1 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 1
श्रीभगवान् ने कहा – हे अर्जुन! चूँकि तुम मुझसे कभी ईर्ष्या नहीं करते, इसीलिए मैं तुम्हें यह परम गुह्यज्ञान तथा अनुभूति बतलाऊँगा, जिसे जानकर तुम संसार के सारे क्लेशों से मुक्त हो जाओगे |

Sunday 18 October 2015

अध्याय 8 श्लोक 8 - 28 , BG 8 - 28 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 28
जो व्यक्ति भक्तिमार्ग स्वीकार करता है, वह वेदाध्ययन, तपस्या, दान, दार्शनिक तथा सकाम कर्म करने से प्राप्त होने वाले फलों से वंचित नहीं होता | वह मात्र भक्ति सम्पन्न करके इन समस्त फलों की प्राप्ति करता है और अन्त में परम नित्यधाम को प्राप्त होता है |

अध्याय 8 श्लोक 8 - 27 , BG 8 - 27 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 27
हे अर्जुन! यद्यपि भक्तगण इन दोनों मार्गों को जानते हैं, किन्तु वे मोहग्रस्त नहीं होते | अतः तुम भक्ति में सदैव स्थिर रहो |

अध्याय 8 श्लोक 8 - 26 , BG 8 - 26 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 26
वैदिक मतानुसार इस संसार से प्रयाण करने के दो मार्ग हैं – एक प्रकाश का तथा दूसरा अंधकार का | जब मनुष्य प्रकाश के मार्ग से जाता है तो वह वापस नहीं आता, किन्तु अंधकार के मार्ग से जाने वाला पुनः लौटकर आता है |

अध्याय 8 श्लोक 8 - 25 , BG 8 - 25 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 25
जो योगी धुएँ, रात्रि, कृष्णपक्ष में या सूर्य के दक्षिणायन रहने के छह महीनों में दिवंगत होता है, वह चन्द्रलोक को जाता है, किन्तु वहाँ से पुनः (पृथ्वी पर) चला आता है |

अध्याय 8 श्लोक 8 - 24 , BG 8 - 24 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 24
जो परब्रह्म के ज्ञाता हैं, वे अग्निदेव के प्रभाव में, प्रकाश में, दिन के शुभक्षण में, शुक्लपक्ष में या जब सूर्य उत्तरायण में रहता है, उन छह मासों में इस संसार से शरीर त्याग करने पर उस परब्रह्म को प्राप्त करते हैं |

अध्याय 8 श्लोक 8 - 23 , BG 8 - 23 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 23
हे भरतश्रेष्ठ! अब मैं उन विभिन्न कालों को बताऊँगा, जिनमें इस संसार से प्रयाण करने के बाद योगी पुनः आता है अथवा नहीं आता |

अध्याय 8 श्लोक 8 - 22 , BG 8 - 22 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 22
भगवान्, जो सबसे महान हैं. अनन्य भक्ति द्वारा ही प्राप्त किये जा सकते हैं | यद्यपि वे अपने धाम में विराजमान हैं, तो भी वे सर्वव्यापी हैं और उनमें सब कुछ स्थित है |

अध्याय 8 श्लोक 8 - 21 , BG 8 - 21 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 21
जिसे वेदान्ती अप्रकट और अविनाशी बताते हैं, जो परम गन्तव्य है, जिसे प्राप्त कर लेने पर कोई वापस नहीं आता, वही मेरा परमधाम है |

अध्याय 8 श्लोक 8 - 20 , BG 8 - 20 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 20
इसके अतिरिक्त एक अन्य अव्यय प्रकृति है, जो शाश्र्वत है और इस व्यक्त तथा अव्यक्त पदार्थ से परे है | यह परा (श्रेष्ठ) और कभी न नाश होने वाली है | जब इस संसार का सब कुछ लय हो जाता है, तब भी उसका नाश नहीं होता |

अध्याय 8 श्लोक 8 - 18 - 19 , BG 8 - 18 - 19 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 18 - 19
ब्रह्मा के दिन के शुभारम्भ में सारे जीव अव्यक्त अवस्था से व्यक्त होते हैं और फिर जब रात्रि आती है तो वे पुनः अव्यक्त में विलीन हो जाते हैं |

जब-जब ब्रह्मा का दिन आता है तो सारे जीव प्रकट होते हैं और ब्रह्मा की रात्रि होते ही वे असहायवत् विलीन हो जाते हैं |

अध्याय 8 श्लोक 8 - 17 , BG 8 - 17 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 17
मानवीय गणना के अनुसार एक हजार युग मिलकर ब्रह्मा का दिन बनता है और इतनी ही बड़ी ब्रह्मा की रात्रि भी होती है |

अध्याय 8 श्लोक 8 - 16 , BG 8 - 16 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 16
इस जगत् में सर्वोच्च लोक से लेकर निम्नतम सारे लोक दुखों के घर हैं, जहाँ जन्म तथा मरण का चक्कर लगा रहता है | किन्तु हे कुन्तीपुत्र! जो मेरे धाम को प्राप्त कर लेता है, वह फिर कभी जन्म नहीं लेता |

अध्याय 8 श्लोक 8 - 15 , BG 8 - 15 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 15
मुझे प्राप्त करके महापुरुष, जो भक्तियोगी हैं, कभी भी दुखों से पूर्ण इस अनित्य जगत् में नहीं लौटते, क्योंकि उन्हें परम सिद्धि प्राप्त हो चुकी होती है |

अध्याय 8 श्लोक 8 - 14 , BG 8 - 14 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 14
हे अर्जुन! जो अनन्य भाव से निरन्तर मेरा स्मरण करता है उसके लिए मैं सुलभ हूँ, क्योंकि वह मेरी भक्ति में प्रवृत्त रहता है |

अध्याय 8 श्लोक 8 - 13 , BG 8 - 13 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 13
इस योगाभ्यास में स्थित होकर तथा अक्षरों के परं संयोग यानी ओंकार का उच्चारण करते हुए यदि कोई भगवान् का चिन्तन करता है और अपने शरीर का त्याग करता है, तो वह निश्चित रूप से आध्यात्मिक लोकों को जाता है |

अध्याय 8 श्लोक 8 - 12 , BG 8 - 12 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 12
समस्त ऐन्द्रिय क्रियाओं से विरक्ति को योग की स्थिति (योगधारणा) कहा जाता है | इन्द्रियों के समस्त द्वारों को बन्द करके तथा मन को हृदय में और प्राणवायु को सिर पर केन्द्रित करके मनुष्य अपने को योग में स्थापित करता है |

अध्याय 8 श्लोक 8 - 11 , BG 8 - 11 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 11
जो वेदों के ज्ञाता हैं, जो ओंकार का उच्चारण करते हैं और जो संन्यास आश्रम के बड़े-बड़े मुनि हैं, वे ब्रह्म में प्रवेश करते हैं | ऐसी सिद्धि की इच्छा करने वाले ब्रह्मचर्यव्रत का अभ्यास करते हैं | अब मैं तुम्हें वह विधि बताऊँगा, जिससे कोई भी व्यक्ति मुक्ति-लाभ कर सकता है |

अध्याय 8 श्लोक 8 - 10 , BG 8 - 10 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 10
मृत्यु के समय जो व्यक्ति अपने प्राण को भौहों के मध्य स्थिर कर लेता है और योगशक्ति के द्वारा अविचलित मन से पूर्णभक्ति के साथ परमेश्र्वर के स्मरण में अपने को लगाता है, वह निश्चित रूप से भगवान् को प्राप्त होता है |

अध्याय 8 श्लोक 8 - 9 , BG 8 - 9 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 9
मनुष्य को चाहिए कि परमपुरुष का ध्यान सर्वज्ञ, पुरातन, नियन्ता, लघुतम से भी लघुतर, प्रत्येक के पालनकर्ता, समस्त भौतिकबुद्धि से परे, अचिन्त्य तथा नित्य पुरुष के रूप में करे | वे सूर्य की भाँति तेजवान हैं और इस भौतिक प्रकृति से परे, दिव्य रूप हैं |

अध्याय 8 श्लोक 8 - 8 , BG 8 - 8 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 8
हे पार्थ! जो व्यक्ति मेरा स्मरण करने में अपना मन निरन्तर लगाये रखकर अविचलित भाव से भगवान् के रूप में मेरा ध्यान करता है, वह मुझको अवश्य ही प्राप्त होता है |

अध्याय 8 श्लोक 8 - 7 , BG 8 - 7 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 7
अतएव, हे अर्जुन! तुम्हें सदैव कृष्ण रूप में मेरा चिन्तन करना चाहिए और साथ ही युद्ध करने के कर्तव्य को भी पूरा करना चाहिए | अपने कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अपने मन एवं बुद्धि को मुझमें स्थिर करके तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त कर सकोगे |

अध्याय 8 श्लोक 8 - 6 , BG 8 - 6 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 6
हे कुन्तीपुत्र! शरीर त्यागते समय मनुष्य जिस-जिस भाव का स्मरण करता है, वह उस उस भाव को निश्चित रूप से प्राप्त होता है |

Saturday 17 October 2015

अध्याय 8 श्लोक 8 - 5 , BG 8 - 5 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 5
और जीवन के अन्त में जो केवल मेरा स्मरण करते हुए शरीर का त्याग करता है, वह तुरन्त मेरे स्वभाव को प्राप्त करता है | इसमें रंचमात्र भी सन्देह नहीं है |

अध्याय 8 श्लोक 8 - 4 , BG 8 - 4 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 4
हे देहधारियों में श्रेष्ठ! निरन्तर परिवर्तनशील यह भौतिक प्रकृति अधिभूत (भौतिक अभिव्यक्ति) कहलाती है | भगवान् का विराट रूप, जिसमें सूर्य तथा चन्द्र जैसे समस्त देवता सम्मिलित हैं, अधिदैव कहलाता है | तथा प्रत्येक देहधारी के हृदय में परमात्मा स्वरूप स्थित मैं परमेश्र्वर (यज्ञ का स्वामी) कहलाता हूँ |

अध्याय 8 श्लोक 8 - 3 , BG 8 - 3 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 3
भगवान् ने कहा – अविनाशी और दिव्य जीव ब्रह्म कहलाता है और उसका नित्य स्वभाव अध्यात्म या आत्म कहलाता है | जीवों के भौतिक शरीर से सम्बन्धित गतिविधि कर्म या सकाम कर्म कहलाती है |

अध्याय 8 श्लोक 8 - 2 , BG 8 - 2 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 2
हे मधुसूदन! यज्ञ का स्वामी कौन है और वह शरीर में कैसे रहता है? और मृत्यु के समय भक्ति में लगे रहने वाले आपको कैसे जान पाते हैं?

अध्याय 8 श्लोक 8 - 1 , BG 8 - 1 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 8 श्लोक 1
अर्जुन ने कहा – हे भगवान्! हे पुरुषोत्तम! ब्रह्म क्या है? आत्मा क्या है? सकाम कर्म क्या है? यह भौतिक जगत क्या है? तथा देवता क्या हैं? कृपा करके यह सब मुझे बताइये |