Translate

Saturday 8 February 2014

अध्याय 6 श्लोक 6 - 25 , BG 6 - 25 Bhagavad Gita As It Is Hindi



 अध्याय 6 श्लोक 25

धीरे-धीरे, क्रमशः पूर्ण विश्र्वासपूर्वक बुद्धि के द्वारा समाधि में स्थित होना चाहिए और इस प्रकार मन को आत्मा में ही स्थित करना चाहिए तथा अन्य कुछ भी नहीं सोचना चाहिए | 
 

अध्याय 6 श्लोक 6 - 24 , BG 6 - 24 Bhagavad Gita As It Is Hindi



 अध्याय 6 श्लोक 24

मनुष्य को चाहिए कि संकल्प तथा श्रद्धा के साथ योगाभ्यास में लगे और पथ से विचलित न हो | उसे चाहिए कि मनोधर्म से उत्पन्न समस्त इच्छाओं को निरपवाद रूप से त्याग दे और इस प्रकार मन के द्वारा सभी ओर से इन्द्रियों को वश में करे |
 

अध्याय 6 श्लोक 6 - 20 , 21 , 22 , 23 BG 6 - 20 , 21 , 22 , 23 Bhagavad Gita As It Is Hindi



 अध्याय 6 श्लोक 20-23


सिद्धि की अवस्था में, जिसे समाधि कहते हैं, मनुष्य का मन योगाभ्यास के द्वारा भौतिक मानसिक क्रियाओं से पूर्णतया संयमित हो जाता है | इस सिद्धि की विशेषता यह है कि मनुष्य शुद्ध मन से अपने को देख सकता है और अपने आपमें आनन्द उठा सकता है | उस आनन्दमयी स्थिति में वह दिव्या इन्द्रियों द्वारा असीम दिव्यासुख में स्थित रहता है | इस प्रकार स्थापित मनुष्य कभी सत्य से विपथ नहीं होता और इस सुख की प्राप्ति हो जाने पर वह इससे बड़ा कोई दूसरा लाभ नहीं मानता | ऐसी स्थिति को पाकर मनुष्य बड़ीसे बड़ी कठिनाई में भी विचलित नहीं होता | यह निस्सन्देह भौतिक संसर्ग से उत्पन्न होने वाले समस्त दुःखों से वास्तविक मुक्ति है |
 

अध्याय 6 श्लोक 6 - 19 , BG 6 - 19 Bhagavad Gita As It Is Hindi



 अध्याय 6 श्लोक 19


जिस प्रकार वायुरहित स्थान में दीपक हिलता-डुलता नहीं, उसी तरह जिस योगी का मन वश में होता है, वह आत्मतत्त्व के ध्यान में सदैव स्थिर रहता है |
 

अध्याय 6 श्लोक 6 - 18 , BG 6 - 18 Bhagavad Gita As It Is Hindi



 अध्याय 6 श्लोक 18



जब योगी योगाभ्यास द्वारा अपने मानसिक कार्यकलापों को वश में कर लेता है और अध्यात्म में स्थित हो जाता है अर्थात् समस्त भौतिक इच्छाओं से रहित हो जाता है, तब वह योग में सुस्थिर कहा जाता है |
 

अध्याय 6 श्लोक 6 - 17 , BG 6 - 17 Bhagavad Gita As It Is Hindi



 अध्याय 6 श्लोक 17



जो खाने, सोने, आमोद-प्रमोद तथा काम करने की आदतों में नियमित रहता है, वह योगाभ्यास द्वारा समस्त भौतिक क्लेशों को नष्ट कर सकता है |
 

अध्याय 6 श्लोक 6 - 16 , BG 6 - 16 Bhagavad Gita As It Is Hindi



 अध्याय 6 श्लोक 16



हे अर्जुन! जो अधिक खाता है या बहुत कम खाता है, जो अधिक सोता है अथवा जो पर्याप्त नहीं सोता उसके योगी बनने की कोई सम्भावना नहीं है |
 

अध्याय 6 श्लोक 6 - 15 , BG 6 - 15 Bhagavad Gita As It Is Hindi



 अध्याय 6 श्लोक 15


इस प्रकार शरीर, मन तथा कर्म में निरन्तर संयम का अब्यास करते हुए संयमित मन वाले योगी को इस भौतिक अस्तित्व की समाप्ति पर भगवद्धाम की प्राप्ति होती है |
 

अध्याय 6 श्लोक 6 - 13 , 14 BG 6 - 13 , 14 Bhagavad Gita As It Is Hindi



 अध्याय 6 श्लोक 13-14


योगाभ्यास करने वाले को चाहिए कि वह अपने शरीर, गर्दन तथा सर को सीधा रखे और नाक के अगले सिरे पर दृष्टि लगाए | इस प्रकार वह अविचलित तथा दमित मन से, भयरहित, विषयीजीवन से पूर्णतया मुक्त होकर अपने हृदय में मेरा चिन्तन करे और मुझे हि अपना चरमलक्ष्य बनाए |
 

अध्याय 6 श्लोक 6 - 11 , 12 BG 6 - 11 , 12 Bhagavad Gita As It Is Hindi


 अध्याय 6 श्लोक 11-12


योगाभ्यास के लिए योगी एकान्त स्थान में जाकर भूमि पर कुशा बिछा दे और फिर उसे मृगछाला से ढके तथा ऊपर से मुलायम वस्त्र बिछा दे | आसन न तो बहुत ऊँचा हो, ण बहुत नीचा | यह पवित्र स्थान में स्थित हो | योगी को चाहिए कि इस पर दृढ़तापूर्वक बैठ जाय और मन, इन्द्रियों तथा कर्मों को वश में करते हुए तथा मन को एक बिन्दु पर स्थित करके हृदय को शुद्ध करने के लिए योगाभ्यास करे |
 

अध्याय 6 श्लोक 6 - 9 , 10 BG 6 - 9 , 10 Bhagavad Gita As It Is Hindi


 अध्याय 6 श्लोक 9-10


जब मनुष्य निष्कपट हितैषियों, प्रिय मित्रों, तटस्थों, मध्यस्थों, ईर्ष्यालुओं, शत्रुओं तथा मित्रों, पुण्यात्माओं एवं पापियों को समान भाव से देखता है, तो वह और भी उन्नत माना जाता है |

योगी को चाहिए कि वह सदैव अपने शरीर, मन तथा आत्मा को परमेश्र्वर में लगाए, एकान्त स्थान में रहे और बड़ी सावधानी के साथ अपने मन को वश में करे | उसे समस्त आकांक्षाओं तथा संग्रहभाव से मुक्त होना चाहिए |
 

अध्याय 6 श्लोक 6 - 8 , BG 6 - 8 Bhagavad Gita As It Is Hindi


 अध्याय 6 श्लोक 8


वह व्यक्ति आत्म-साक्षात्कार को प्राप्त तथा योगी कहलाता है जो अपने अर्जित ज्ञान तथा अनुभूति से पूर्णतया सन्तुष्ट रहता है | ऐसा व्यक्ति अध्यात्म को प्राप्त तथा जितेन्द्रिय कहलाता है | वह सभी वस्तुओं को – चाहे वे कंकड़ हों, पत्थर हों या कि सोना – एकसमान देखता है |
 

अध्याय 6 श्लोक 6 - 7 , BG 6 - 7 Bhagavad Gita As It Is Hindi


 अध्याय 6 श्लोक 7

जिसने मन को जीत लिया है, उसने पहले ही परमात्मा को प्राप्त कर लिया है, क्योंकि उसने शान्ति प्राप्त कर ली है | ऐसे पुरुष के लिए सुख-दुख, सर्दी-गर्मी एवं मान-अपमान एक से हैं |
 

अध्याय 6 श्लोक 6 - 6 , BG 6 - 6 Bhagavad Gita As It Is Hindi


 अध्याय 6 श्लोक 6

जिसने मन को जीत लिया है उसके लिए मन सर्वश्रेष्ठ मित्र है, किन्तु जो ऐसा नहीं कर पाया इसके लिए मन सबसे बड़ा शत्रु बना रहेगा |
 

अध्याय 6 श्लोक 6 - 5 , BG 6 - 5 Bhagavad Gita As It Is Hindi


 अध्याय 6 श्लोक 5

मनुष्य को चाहिए कि अपने मन की सहायता से अपना उद्धार करे और अपने को नीचे ण गिरने दे | यह मन बद्धजीव का मित्र भी है और शत्रु भी |
 

अध्याय 6 श्लोक 6 - 4 , BG 6 - 4 Bhagavad Gita As It Is Hindi


 अध्याय 6 श्लोक 4

जब कोई पुरुष समस्त भौतिक इच्छाओं का त्यागा करके न तो इन्द्रियतृप्ति के लिए कार्य करता है और न सकामकर्मों में प्रवृत्त होता है तो वह योगारूढ कहलाता है |
 

अध्याय 6 श्लोक 6 - 3 , BG 6 - 3 Bhagavad Gita As It Is Hindi


 अध्याय 6 श्लोक 3
 

अष्टांगयोग के नवसाधक के लिए कर्म साधन कहलाता है और योगसिद्ध पुरुष के लिए समस्त भौतिक कार्यकलापों का परित्याग ही साधन कहा जाता है |

 

अध्याय 6 श्लोक 6 - 2 , BG 6 - 2 Bhagavad Gita As It Is Hindi


 अध्याय 6 श्लोक 2
 
हे पाण्डुपुत्र! जिसे संन्यास कहते हैं उसे ही तुम योग अर्थात् परब्रह्म से युक्त होना जानो क्योंकि इन्द्रियतृप्ति के लिए इच्छा को त्यागे बिना कोई कभी योगी नहीं हो सकता |