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Saturday 23 March 2013

अध्याय 2 श्लोक 2 - 45 , BG 2 - 45 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 2 श्लोक 45
वेदों में मुख्यतया प्रकृति के तीनों गुणों का वर्णन हुआ है | हे अर्जुन! इन तीनों गुणों से ऊपर उठो | समस्त द्वैतों और लाभ तथा सुरक्षा की सारी चिन्ताओं से मुक्त होकर आत्म-परायण बनो |

Friday 22 March 2013

अध्याय 2 श्लोक 2 - 44 , BG 2 - 44 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 2 श्लोक 44
जो लोग इन्द्रियभोग तथा भौतिक ऐश्र्वर्य के प्रति अत्यधिक आसक्त होने से ऐसी वस्तुओं से मोहग्रस्त हो जाते हैं, उनके मनों में भगवान् के प्रति भक्ति का दृढ़ निश्चय नहीं होता |

अध्याय 2 श्लोक 2 - 42 , 43 , BG 2 - 42 , 43 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 2 श्लोक 42-43
अल्पज्ञानी मनुष्य वेदों के उन अलंकारिक शब्दों के प्रति अत्यधिक आसक्त रहते हैं, जो स्वर्ग की प्राप्ति, अच्छे जन्म, शक्ति इत्यादि के लिए विविध सकाम कर्म करने की संस्तुति करते हैं | इन्द्रियतृप्ति तथा ऐश्र्वर्यमय जीवन की अभिलाषा के कारण वे कहते हैं कि इससे बढ़कर और कुछ नहीं है |

अध्याय 2 श्लोक 2 - 41 , BG 2 - 41 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 2 श्लोक 41
जो इस मार्ग पर (चलते) हैं वे प्रयोजन में दृढ़ रहते हैं और उनका लक्ष्य भी एक होता है | हे कुरुनन्दन! जो दृढ़प्रतिज्ञ नहीं है उनकी बुद्धि अनेक शाखाओं में विभक्त रहती है |

अध्याय 2 श्लोक 2 - 40 , BG 2 - 40 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 2 श्लोक 40
इस प्रयास में न तो हानि होती है न ही ह्रास अपितु इस पथ पर की गई अल्प प्रगति भी महान भय से रक्षा कर सकती है |

अध्याय 2 श्लोक 2 - 39 , BG 2 - 39 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 2 श्लोक 39
यहाँ मैंने वैश्लेषिक अध्ययन (सांख्य) द्वारा इस ज्ञान का वर्णन किया है | अब निष्काम भाव से कर्म करना बता रहा हूँ, उसे सुनो! हे पृथापुत्र! तुम यदि ऐसे ज्ञान से कर्म करोगे तो तुम कर्मों के बन्धन से अपने को मुक्त कर सकते हो |

अध्याय 2 श्लोक 2 - 38 , BG 2 - 38 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 2 श्लोक 38
तुम सुख या दुख, हानि या लाभ, विजय या पराजय का विचार किये बिना युद्ध के लिए युद्ध करो | ऐसा करने पर तुम्हें कोई पाप नहीं लगेगा |

अध्याय 2 श्लोक 2 - 37 , BG 2 - 37 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 2 श्लोक 37
हे कुन्तीपुत्र! तुम यदि युद्ध में मारे जाओगे तो स्वर्ग प्राप्त करोगे या यदि तुम जीत जाओगे तो पृथ्वी के साम्राज्य का भोग करोगे | अतः दृढ़ संकल्प करके खड़े होओ और युद्ध करो |

अध्याय 2 श्लोक 2 - 36 , BG 2 - 36 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 2 श्लोक 36
तुम्हारे शत्रु अनेक प्रकार के कटु शब्दों से तुम्हारा वर्णन करेंगे और तुम्हारी सामर्थ्य का उपहास करेंगे | तुम्हारे लिए इससे दुखदायी और क्या हो सकता है ?

अध्याय 2 श्लोक 2 - 35 , BG 2 - 35 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 2 श्लोक 35
जिन-जिन महाँ योद्धाओं ने तुम्हारे नाम तथा यश को सम्मान दिया है वे सोचेंगे कि तुमने डर के मारे युद्धभूमि छोड़ दी है और इस तरह वे तुम्हें तुच्छ मानेंगे |

अध्याय 2 श्लोक 2 - 34 , BG 2 - 34 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 2 श्लोक 34
लोग सदैव तुम्हारे अपयश का वर्णन करेंगे और सम्मानित व्यक्ति के लिए अपयश तो मृत्यु से भी बढ़कर है |

अध्याय 2 श्लोक 2 - 33 , BG 2 - 33 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 2 श्लोक 33
किन्तु यदि तुम युद्ध करने के स्वधर्म को सम्पन्न नहीं करते तो तुम्हें निश्चित रूप से अपने कर्तव्य की अपेक्षा करने का पाप लगेगा और तुम योद्धा के रूप में भी अपना यश खो दोगे |

अध्याय 2 श्लोक 2 - 32 , BG 2 - 32 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 2 श्लोक 32
हे पार्थ! वे क्षत्रिय सुखी हैं जिन्हें ऐसे युद्ध के अवसर अपने आप प्राप्त होते हैं जिससे उनके लिए स्वर्गलोक के द्वार खुल जाते हैं |

Tuesday 12 March 2013

अध्याय 2 श्लोक 2 - 31 , BG 2 - 31 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 2 श्लोक 31
क्षत्रिय होने के नाते अपने विशिष्ट धर्म का विचार करते हुए तुम्हें जानना चाहिए कि धर्म के लिए युद्ध करने से बढ़ कर तुम्हारे लिए अन्य कोई कार्य नहीं है | अतः तुम्हें संकोच करने की कोई आवश्यकता नहीं है |

अध्याय 2 श्लोक 2 - 30 , BG 2 - 30 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 2 श्लोक 30
हे भारतवंशी! शरीर में रहने वाले (देही) का कभी भी वध नहीं किया जा सकता । अतः तुम्हें किसी भी जीव के लिए शोक करने की आवश्यकता नहीं है ।

अध्याय 2 श्लोक 2 - 29 , BG 2 - 29 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 2 श्लोक 29
कोई आत्मा को आश्चर्य से देखता है, कोई इसे आश्चर्य की तरह बताता है तथा कोई इसे आश्चर्य की तरह सुनता है, किन्तु कोई-कोई इसके विषय में सुनकर भी कुछ नहीं समझ पाते |

अध्याय 2 श्लोक 2 - 28 , BG 2 - 28 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 2 श्लोक 28
सारे जीव प्रारम्भ में अव्यक्त रहते हैं, मध्य अवस्था में व्यक्त होते हैं और विनष्ट होने पर पुनः अव्यक्त हो जाते हैं | अतः शोक करने की क्या आवश्यकता है?

अध्याय 2 श्लोक 2 - 27 , BG 2 - 27 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 2 श्लोक 27
जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और मृत्यु के पश्चात् पुनर्जन्म भी निश्चित है | अतः अपने अपरिहार्य कर्तव्यपालन में तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए |

अध्याय 2 श्लोक 2 - 26 , BG 2 - 26 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 2 श्लोक 26
किन्तु यदि तुम यह सोचते हो कि आत्मा (अथवा जीवन का लक्षण) सदा जन्म लेता है तथा सदा मरता है तो भी हे महाबाहु! तुम्हारे शोक करने का कोई कारण नहीं है |

अध्याय 2 श्लोक 2 - 25 , BG 2 - 25 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 2 श्लोक 25
यह आत्मा अव्यक्त, अकल्पनीय तथा अपरिवर्तनीय कहा जाता है | यह जानकार तुम्हें शरीर के लिए शोक नहीं करना चाहिए |

Saturday 9 March 2013

अध्याय 2 श्लोक 2 - 24 , BG 2 - 24 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 2 श्लोक 24
यह आत्मा अखंडित तथा अघुलनशील है | इसे न तो जलाया जा सकता है, न ही सुखाया जा सकता है | यह शाश्र्वत, सर्वव्यापी, अविकारी, स्थिर तथा सदैव एक सा रहने वाला है |

अध्याय 2 श्लोक 2 - 23 , BG 2 - 23 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 2 श्लोक 23
यह आत्मा न तो कभी किसी शस्त्र द्वारा खण्ड-खण्ड किया जा सकता है, न अग्नि द्वारा जलाया जा सकता है, न जल द्वारा भिगोया या वायु द्वारा सुखाया जा सकता है |

अध्याय 2 श्लोक 2 - 22 , BG 2 - 22 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 2 श्लोक 22
जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने तथा व्यर्थ के शरीरों को त्याग कर नवीन भौतिक शरीर धारण करता है |