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Thursday 10 January 2013

अध्याय 1 श्लोक 1 - 12 , BG 1 - 12 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 1 श्लोक 12
तब कुरुवंश के वयोवृद्ध परम प्रतापी एवं वृद्ध पितामह ने सिंह-गर्जना की सी ध्वनि करने वाले अपने शंख को उच्च स्वर से बजाया, जिससे दुर्योधन को हर्ष हुआ |




अध्याय 1: कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण

श्लोक 1 . 12

तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः |
सिंहनादं विनद्योच्चैः शङ्खं दध्मौ प्रतापवान् || १२ ||

तस्य – उसका; सञ्जयनयन् – बढाते हुए; हर्शम् – हर्ष; कुरु-वृद्धः – कुरुवंश के वयोवृद्ध (भीष्म); पितामहः – पितामह, बाबा; सिंह-नादम् – सिंह की सी गर्जना; विनद्य – गरज कर; उच्चैः - उच्च स्वर से; शङखम् – शंख; दध्मौ – बजाया; प्रताप-वान् – बलशाली |
 
भावार्थ
तब कुरुवंश के वयोवृद्ध परम प्रतापी एवं वृद्ध पितामह ने सिंह-गर्जना की सी ध्वनि करने वाले अपने शंख को उच्च स्वर से बजाया, जिससे दुर्योधन को हर्ष हुआ |
 
 तात्पर्य
 
कुरुवंश के वयोवृद्ध पितामह अपने पौत्र दुर्योधन का मनोभाव जान गये और उनके प्रति अपनी स्वाभाविक दयावश उन्होंनेउसे प्रसन्न करने के लिए अत्यन्त उच्च स्वर से अपना शंख बजाया जो उनकी सिंह के समान स्थिति के अनुरूप था | अप्रत्यक्ष रूप में शंख के द्वारा प्रतीकात्मक ढंग से उन्होंने अपने हताश पौत्र दुर्योधन को बता दिया कि उन्हें युद्ध में विजय की आशा नहीं है क्योंकि दुसरे पक्ष में साक्षात् भगवान् श्रीकृष्ण हैं | फिर भी युद्ध का मार्गदर्शन करना उनका कर्तव्य था और इस सम्बन्ध में वे कोई कसर नहीं रखेंगे |



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